दिल की हसरतें पूरी हों भी जाएँ, तो क्या कुछ पल को अगर सुकून मिल भी जाए, तो क्या यकीनन दिल में फिर जन्म लेगी नयी हसरत, फिर तड़पेंगे हसरत मुकम्मल भी हो, तो क्या ज़िन्दगी के सफर में, हसरतों के मेले हैं आज ये रही कल वो, न भी पूरी हों, तो क्या इस मेले से निकल, पाले सुकून का जीवन सुकून के बिन हसरतें पूरी भी हों, तो क्या ✍️ सीमा कौशिक 'मुक्त' ✍️
Month: May 2022
प्यार और दर्द
जो ज़रूरत से करे प्यार ..........वो प्यार ही ,होता है कहाँ दर्द बर्दाश्त से बाहर हो............ तो वाज़िब, होता है कहाँ इस दुनिया में मिल कर भी,किसी को,नहीं मिलता कुछ भी पर प्यार और दर्द के बिन ........जीवन यहाँ, होता है कहाँ
174.दोहा
जो हमको उपलब्ध है , उसका लो आनंद
ख़ुशबू न हो गुलाब की, स्वाद चखो गुलकंद
✍️सीमा कौशिक ‘मुक्त’ ✍️
ज़रूरत
यूँ तो किसी को किसी की भी सदा ज़रूरत नहीं होती पर ये सुनना बड़ा मुश्किल ! अब मेरी ज़रूरत न रही। कुछ नहीं रहता बाकी कहने सुनने को,सब सकल ख़त्म जब बोल दिया अपनो ने ! अब मेरी ज़रूरत न रही। ज़रूरत कहीं अन्यत्र पूरी हो गयी या ज़रूरत ख़त्म ज़रूरत बदल गयीं क्या ? कि अब मेरी ज़रूरत न रही। मत आने दो जीवन में वो वक़्त कि तुमसे कोई कहे जहाँ जाओ जो करो, अब तुम्हारी ज़रूरत न रही।
आयी बहारें
चारों तरफ मंद मंद सी पवन झूमने लगा है ये मदमस्त मन घुमड़ घुमड़ बादल छा रहे गगन बूंदें बरस रहीं, ज्यूँ आया सावन प्यास धरती की, देखो बुझा रहा सौंधी महक से महका, घर आँगन पात पात धुल गया, उगे नए पत्ते छायी हरियाली, चमके वन उपवन हवाओं में फैली गजब की खुशबू आयी बहारें!आ जाओ,अब तो साजन! ✍️सीमा कौशिक 'मुक्त' ✍️
173.दोहा
*निज हित से ऊपर तकेँ ,ऐसे कम हैं लोग* *जो ऐसी कोशिश करें ,कहें लगा है रोग* ✍️सीमा कौशिक 'मुक्त' ✍️
172.दोहा
*अहंकार ही मूल है, सब अवगुण की खान* *सब रिश्ते बिगड़ें मगर, तुम्हें पड़े न भान* ✍️सीमा कौशिक 'मुक्त' ✍️
171.दोहा
*पास तुम्हारे खोजने, आते सुख की छाँव*। *तुम भी दुख बाँटो अगर, कहाँ मिले फिर ठाँव*।। ✍️सीमा कौशिक 'मुक्त' ✍️
170.दोहा
*दिलों में समाई नहीं, घर में कैसे आय* *घर छोटा हो या बड़ा, साथ नहीं रह पाय* ✍️सीमा कौशिक 'मुक्त' ✍️
झुनझुना
मज़बूरी का झुनझुना मत स्वयं को पकड़ा
स्वतंत्रता से हमेशा …..अपनी राह चमका
दूजे पर निर्भर रहें…… ख़ुद का है अपमान
स्वावलंबन-संजीवनी…. से जीवन दमका
✍️सीमा कौशिक ‘मुक्त’ ✍️