कहीं भी मैं चली जाऊँ कहूँ क्या याद आने में जलाने के नए किस्से बहाने भी बनाने में कसम खाने खिलाने के बहाने दिल लुभाना क्यों ज़माना भी बुरा लगता हमें हँसने हँसाने में समझ पाओ अजी समझो, नहीं अधिकार तुम्हारा मगर क्यों वारते हो दिल हमारे मुस्कुराने में लुभाने को बहुत हैं तितलियाँ सारे जहाँ मालिक मज़ा क्या है उँचाई से किसी को भी गिराने में इसे मेरी ज़ुबानी प्यार का इज़हार मत समझो बड़ा आता मुझे गुस्सा तुझे अपना बताने में ✍️सीमा कौशिक 'मुक्त' ✍️