मेरे टूटे हुए दिल और ख़्वाबों की किरचें माँ को न चुभ जाएँ कहीं वो मुस्कुराते हुए बोली ठीक हूँ माँ ... एक उम्र गुजारी माँ बाप की इज़्ज़त रखने में सब्र का बाँध टूट न जाए कहीं पूरी जान लगा कर बोली ठीक हूँ माँ ... बहुत बार दिल किया गले लग के कह दूँ वो सारी बातें जो जमती रहीं दिल में पर माँ को कुछ हो जाने का डर उसने तसल्ली दी ,बोली ठीक हूँ माँ ... पर कभी कभी लगा बस बहुत हुआ आज नहीं कह पाऊँगी जो हमेशा कहा ठीक हूँ माँ ... मेरे लब ही न खुले और माँ बिनकहे सब समझती और समझाती रही और चला अनवरत ये कहना ठीक हूँ माँ ...