ज़रूरी नहीं कोई मारे किसी को और सज़ा पाए कभी कभी मर-मर के जीने को भी मज़बूर करता है ऐसे जगत में हैं हम साहब, इंसान गलत होता खुद मगर दूसरे की गलतियों पर भरपूर शोर करता है
ज़रूरी नहीं कोई मारे किसी को और सज़ा पाए कभी कभी मर-मर के जीने को भी मज़बूर करता है ऐसे जगत में हैं हम साहब, इंसान गलत होता खुद मगर दूसरे की गलतियों पर भरपूर शोर करता है