187.दोहा

*दर्द विरह का दे रहा, बहुत बड़ी ये सीख*
*ख़ुद ही ख़ुद से प्यार कर,प्यार न मिलता भीख*
               ✍️ सीमा कौशिक 'मुक्त' ✍️ 

दर्द

इंतज़ार का दर्द जाने, इंतज़ार करने वाला  
बस प्यार का दर्द जाने, सच्चा प्यार करने वाला 
जी होती है बेवफाई ,आदत में जिनकी शामिल 
यकीनन हमें दर्द देकर, है दिल से जाने वाला 

तेरी याद

विषय-बहर आधारित गजल
काफिया-आती
रदीफ- है।
बहर =2 2 2 2 2 2 2 २ =१६
वो कुछ ऐसे भरमाती है
चीज़ बनी वो सौगाती है
उनका रिश्ता ऐसे लगता
जैसे दीपक औ बाती है

दूर रहे वो पास न आये
दिल जेहन पर छा जाती है

सब सच झूठ कहाँ पहचाने
इतना मीठा बतियाती है

दर्द विरह में ऐसे उमड़ा
विरहन की फटती छाती है

मन तुम संग लगा यूँ जाना
सुधबुध तक अब बिसराती है

मिलना उससे तो तुम कहना
तेरी याद बहुत आती है
     ✍️ सीमा कौशिक 'मुक्त' ✍️ 

182.दोहा

*जाति धर्म का क्यों तुझे,  है इतना अभिमान* 
*मन चाहा मिलता नहीं, प्रभु-प्रदत्त तू जान* 
    ✍️ सीमा कौशिक'मुक्त'✍️

इज़हार

कैसा है ये प्यार जो, कर सके न इज़हार
ये शूरवीर ही करे, जो दिल से गुलज़ार
जो दिल से गुलज़ार, प्यार है  जिसका सच्चा 
प्यार सिर्फ है चाह, रहे बूढ़ा या बच्चा 
अपनाओ यदि प्यार, यार चाहे हो जैसा 
करे न जो इज़हार, प्यार है उसका कैसा

प्यारा

प्यारा तो बस प्यार है, है मनभावन गीत 
मधुर सुरीला गा इसे, सबका मन ले जीत
सबका मन ले जीत, प्यार है मधुर कहानी 
बोल न कड़वे बोल, सदा रख मीठी वानी
अपना हो हर शख़्स, लगे सबसे तू न्यारा  
बिन रिपु होते  प्राण, लगे है सबको प्यारा