विषय-बहर आधारित गजल काफिया-आती रदीफ- है। बहर =2 2 2 2 2 2 2 २ =१६ वो कुछ ऐसे भरमाती है चीज़ बनी वो सौगाती है उनका रिश्ता ऐसे लगता जैसे दीपक औ बाती है दूर रहे वो पास न आये दिल जेहन पर छा जाती है सब सच झूठ कहाँ पहचाने इतना मीठा बतियाती है दर्द विरह में ऐसे उमड़ा विरहन की फटती छाती है मन तुम संग लगा यूँ जाना सुधबुध तक अब बिसराती है मिलना उससे तो तुम कहना तेरी याद बहुत आती है ✍️ सीमा कौशिक 'मुक्त' ✍️
बहुत सुंदर।
LikeLike