पेशे खिदमत है ये ग़ज़ल आपके लिए मीटर -२२१२ २२१२ २२ " ख़ंज़र " भूला न दिल, बिसरे न वो मंज़र जो पीठ पर घोंपा मिरे ख़ंज़र ।। मासूम दिल ऐसे हुआ खाली जैसे ज़मीं होती रही बंजर ।। आया ज़ुबाँ पर ज़िक्र तिरा क्यों कर दिल में रहे जब तक न हो पिंजर गुज़रा वक़्त चाही महरबानी मज़बूत हम हैं मत कहो जर्जर।। कैसे खिलेंगे गुल गुलिस्ताँ में माली लगाता हो जब बदनज़र।। हैं 'मुक्त' को न सहन अजी मसले वो है अड़िग ज्यों हो विशाल शजर।। ✍️ सीमा कौशिक 'मुक्त' ✍️