दोहा.255

सत्य-असत्य विमर्श हों, फैलाते हैं झूठ 
भ्रम का बढ़े प्रचार तब, अपने जाएँ रूठ 
             ️✍️सीमा कौशिक 'मुक्त' ✍️ 

अतीत

अतीत की झोली से, कुछ खोया कुछ पाया  
खुशियाँ कम रहीं हैं, दर्द ही हुआ नुमाया 
मत जानो झोले में ,और बचा क्या बाकी 
जो बच गया हमारा, रहा वही सरमाया 
             ️✍️सीमा कौशिक 'मुक्त' ✍️ 

अतीत

तुम अतीत के झरोंखो में ,झाँकते क्यों हो  
उखड़ा जड़ से शज़र, बारहा बोते क्यों हो 
तुम्हारे दिल की फसल तो ,सूख ली कबकी  
आँसुओं से दिन-रात ,उसे सींचते क्यों हो 
             ️✍️सीमा कौशिक 'मुक्त' ✍️ 

प्यास

 कईं बार ऐसा हुआ साथ सबके 
जो चाहा हमने मिला भी लेकिन  
हमारे दिल की प्यास बुझी  नहीं है 
सोचें क्यों प्यास  झूठी हो रही है... 

कभी ये लगता है इससे बुझेगी 
कभी ये लगता कुछ और ही पा लें 
रही दिल की तिश्नगी ऐसी साहब 
व्याकुलता बस दिनोदिन बढ़ रही है ...
 
क्यों समझते नहीं सभी भ्रम ये,
इंद्रजाल में उलझे उलझे हम हैं    
सही नहीं रहा माया में उलझना 
झूठे जग में प्यास झूठी हुई  है ...

अपनी प्यास की सार्थकता जानो 
अपनी प्यास का उदगम पहचानो 
झूठी प्यास के पीछे यूँ न भागो   
सुन ये प्यास ही झूठी हो रही है....
             ✍️सीमा कौशिक 'मुक्त' ✍️ 

बे-आवाज़

जिनकी आँखों में वहशत और अंगारे हैं 
वो दूजों से कम खुद से ही सदा हारे हैं 
जो दूसरों को डराते हैं धमकियाँ देकर 
रब की बे-आवाज़ लाठी ने ही मारे हैं 

हमदर्दी

वो दीन बन अपने दर्द का करने लगा बयान 
हमदर्दी रखने लगे सब तो रहने लगा परेशान 
कशमकश इस बात कि हो रही है 'मुक्त'अब 
हमदर्दी करे या न करे यहाँ अब कोई इंसान 
  ✍️सीमा कौशिक 'मुक्त' ✍️

	

पैग़ाम

वो दे के दर्द उससे मुस्कान मांगे है 
पौधा नीम का बोकर क्यों आम मांगे है 
हरेक बात पर उसकी वो चुप रही शायद 
इसीलिए वफ़ा का वो पैग़ाम मांगे है 
                  ✍️सीमा कौशिक 'मुक्त' ✍️