मासूम हम हैं वो बन रहे हैं तीरे-नज़र फिर क्यों तन रहे हैं हमें समझ न सके तुम अब तक क्यों बेवजह अपने बन रहे है हमें न हिम्मत गिनाएँ गलती हमारी गलती वो गिन रहे हैं प्यार के दो लफ्ज़ सुन न पाए ज़माने भर की हम सुन रहे हैं जले ख्वाब आँखों के सामने पर ख्वाब हम अब भी बुन रहे हैं हमें किसी से नहीं शिकायत दुनिया नहीं रब को चुन रहे हैं ✍️सीमा कौशिक 'मुक्त' ✍️
बहुत सुंदर।
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