तुम अतीत के झरोंखो में ,झाँकते क्यों हो उखड़ा जड़ से शज़र, बारहा बोते क्यों हो तुम्हारे दिल की फसल तो ,सूख ली कबकी आँसुओं से दिन-रात ,उसे सींचते क्यों हो ️✍️सीमा कौशिक 'मुक्त' ✍️
तुम अतीत के झरोंखो में ,झाँकते क्यों हो उखड़ा जड़ से शज़र, बारहा बोते क्यों हो तुम्हारे दिल की फसल तो ,सूख ली कबकी आँसुओं से दिन-रात ,उसे सींचते क्यों हो ️✍️सीमा कौशिक 'मुक्त' ✍️