कईं बार ऐसा हुआ साथ सबके जो चाहा हमने मिला भी लेकिन हमारे दिल की प्यास बुझी नहीं है सोचें क्यों प्यास झूठी हो रही है... कभी ये लगता है इससे बुझेगी कभी ये लगता कुछ और ही पा लें रही दिल की तिश्नगी ऐसी साहब व्याकुलता बस दिनोदिन बढ़ रही है ... क्यों समझते नहीं सभी भ्रम ये, इंद्रजाल में उलझे उलझे हम हैं सही नहीं रहा माया में उलझना झूठे जग में प्यास झूठी हुई है ... अपनी प्यास की सार्थकता जानो अपनी प्यास का उदगम पहचानो झूठी प्यास के पीछे यूँ न भागो सुन ये प्यास ही झूठी हो रही है.... ✍️सीमा कौशिक 'मुक्त' ✍️
Jhoothi pyaas! wah! bahut khoob.
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