शुक्रिया रब !अब दुनिया को मैं....नज़र आने लगी हूँ रोज़ कमियाँ बता किया अहसान.....निखरने लगी हूँ आजकल दिखता है, कुछ व्यवहार बदला-बदला सा क्या वाक़ई सतत .....मंज़िल की तरफ बढ़ने लगी हूँ ✍️सीमा कौशिक 'मुक्त' ✍️
Month: September 2022
अनकहा
रिश्तों में न ज़रूरी है न अच्छा, सबकुछ कहना कुछ अनकहा हमारे बीच, अनकहा रहने दो न कहके न खोना वो पल, जो हमने महसूस किये उन पलों को दिल में सहेज, प्यार से रहने दो न ✍️सीमा कौशिक 'मुक्त' ✍️
खेला
धूप-छाँव जीवन का खेला जीवन में सुख-दुःख का मेला सब कुछ है नश्वर जीवन में है बहता पानी का रेला ✍️सीमा कौशिक 'मुक्त' ✍️
नारी
अंतर्मन को जो छल जाए, उसको माफ़ न करना तुम ऐ नारी अपने संग यूँ , घोर खिलवाड़ न करना तुम व्यर्थ न करना दया भावना, ऐसे मूर्ख मानव पर नारी को जो कमतर समझे उसको भाव न देना तुम ✍️सीमा कौशिक 'मुक्त' ✍️
साबित
खुद को इस ज़माने में, साबित करना ज़रूरी है कोई चाहे न चाहे, दर्द से गुजरना ज़रूरी है हवा खिलाफ हो तो भी, लड़ेंगे पूरे दम से हम हों आँसू भरी आँखें, मुस्कुराना ज़रूरी है ताकत के नशे में वो, अब खुद पर ही मोहित है रखनी है हमे हिम्मत, औकात बताना ज़रूरी है शिखर तो चाहते हैं सभी ,योग्य होना ज़रूरी है अंजाम कुछ भी हो, आदर्शों पे टिकना ज़रूरी है ✍️सीमा कौशिक 'मुक्त' ✍️
हाल
जिस हाल में रब रखे उस हाल में रह लो तुम कुछ दिल की सुन लो कुछ दिल की कह लो तुम जिस हाल में रब रखे... क्यों दर्द से डरते हो-3 इस दर्द को सहलो तुम सामनेवाले की-2 मुस्कान चली जाए-2 भूल के भी ऐसा कोई बोल न बोलो तुम जिस हाल में रब रखे... सबके जीवन में, ऐसा क्षण आता है -3 रस्सी साँप बनती, -3 और दिल घबराता है -2 खुद पे भरोसा रख, आगे कदम बढ़ाओ तुम-2 जिस हाल में रब रखे... ✍️सीमा कौशिक 'मुक्त' ✍️
तन्हाई
कहते हैं ये तन्हाई, राज़ सब खोल देती है क्या शय है जो भीतर के, भेद सब खोल देती है सभी कहते हैं ज़िन्दगी ये, फ़क़त चार दिन की है चार दिवस की सच्चाई, पोल सब खोल देती है ✍️सीमा कौशिक 'मुक्त' ✍️
267.दोहा
*भूल गए यदि राह तुम, अहंकार में चूर* *नहीं मिलेगा मान फिर, अपनों से हो दूर* ✍️ सीमा कौशिक 'मुक्त' ✍️
सौगात
🌹🌹आप सबका अभिवादन करती हूँ। मैं सीमा कौशिक 'मुक्त' ,एक इंजीनियरिंग स्नातक, दिल से युवा,अपनी बहुत सारी उपलब्धियों और अनुभव को काव्य के माध्यम से आप सब के साथ साझा करुँगी। पढ़ाई के बाद ३५ वर्ष मैंने घर, पति और बच्चों को दिए,अभी भी दे रही हूँ। ये काव्य जो ह्रदय में वर्षों से सुप्तावस्था में रहा। उसे सामने लाने में मेरे बेटे 'मार्तण्ड कौशिक' का काफी योगदान है। अब मैं चाहती हूँ कि वो अपनी माँ पर कवयित्री के रूप में भी गर्व करे । पारी देर से शुरू हुई , पर उम्मीद है ,आपको हरगिज़ निराश नहीं करुँगी।🌹🌹 *अपने दिल का हर दर्द समेट लायी हूँ* *आप सभी को अपना समझ के आयी हूँ* *काव्य माध्यम से साझा करलूँ ये जीवन* *नव अनुपम भावों की सौगात लायी हूँ* ✍️ सीमा कौशिक 'मुक्त' ✍️
बंधन
दिल से दिल का बंधन ही तड़पाता है हद से ज्यादा प्यार अगर बढ़ जाता है इक को दर्द रहे, दूजे के नैनों में अश्कों का सैलाब नज़र क्यों आता है ✍️ सीमा कौशिक 'मुक्त' ✍️