"बरसात की भीगी रातों में ",राधिका चोपड़ा जी को ये ग़ज़ल गाते सुना तो कुछ अलग भाव उमड़ पड़े और ये गीत प्रस्फुटित हुआ --- बरसात की भीगी रातों में गीली लकड़ी-सा सुलगा मन इस करवट भी बेचैनी और उस करवट भी थी तड़पन बरसात की भीगी----- बरसात छमाछम जब बरसी उसने इस दिल पर दी थपकी बदरा टप-टप नैना टप-टप ये रूह हमारी फिर तरसी बरसात की भीगी----- तुम किसी बहाने आ जाते न ख़्वाबों में भी थी अड़चन मन दर्द विरह का न भूला चाहें नैन खुले थे या थे बंद बरसात की भीगी----- खोजा दिल तो तुम हाज़िर थे फिर क्यों उमड़ी थी तड़पन साँसें मेरी तुम चला रहे थे और जारी भी थी धड़कन बरसात की भीगी रातों में ---- ✍️ सीमा कौशिक 'मुक्त' ✍️