सघन अमावस जैसा अंतस, दीवाली बन आओ न राम मेरे मैं तुम पर वारी , मुझसे मिलने आओ न अंतर्मन के दूर हों अवगुण, ज्ञान दीप जलाओ न राघव मुझसे अबकी मिलने, दीवाली से आओ न नयन ख़ुशी से जगमग करते होठों पर मुस्काने हों चिर प्रतीक्षित नैनों में प्रेम का दीप जलाओ न ✍️ सीमा कौशिक 'मुक्त' ✍️