चोरी का मज़ा

चोरी का अपना मज़ा है 
एक बच्चे ने समझाया 
जब वो माँ से छिपकर पार्क में खेलने आया 
माँ-बाप जिस बात के लिए मना  करते थे 
उसीको करने को सभी बच्चे मचलते थे 
हम सब जीवन की राहों में हर बार मचलते हैं 
कुछ  चोरी-चोरी करने की ज़िद्द पकड़ते है 
डॉक्टर ने मना किया कुछ खाने को या  
पापा ने मना किया पिक्चर जाने को 
या विवाहेतर सम्बन्ध बनाने को 
इज़ाज़त मिल जाए तो करने का मन नहीं रहता 
न मिले इज़ाज़त तो बंधन तोड़ने को आतुर मन रहता 
आखिर ऐसा क्यों है चोरी में मज़ा क्यों है
ये उत्तेजना क्यों है  
माँ-बाप हों या अपना कोई और
 वो सही ही समझाते हैं 
चोरी के दुष्परिणामों से वो ही बचाते हैं
लौट कर बुद्धू घर को आते हैं 
तन से चोरी ,धन की चोरी,पकड़ी अक्सर जाती है 
पर मन की चोरी बहुत हमें तड़पाती है 
माना मन की चोरी में आनंद है 
इस आनंद से उभरें तो ब्रह्मानंद है !

2 thoughts on “चोरी का मज़ा

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