वो क्या कविता, शेर हैं, ग़ज़ल हैं के जिनको सुनके न वाह निकली वो क्या दर्द है कि जिसको देखे दूजे की दिल से न आह निकली बेकार काबू के ख़ुशी-गम हैं न आह निकली, न ही वाह निकली समझ के सत्य जिसको भी चाहा वो झूठी हर एक चाह निकली ✍️ सीमा कौशिक 'मुक्त' ✍️
वो क्या कविता, शेर हैं, ग़ज़ल हैं के जिनको सुनके न वाह निकली वो क्या दर्द है कि जिसको देखे दूजे की दिल से न आह निकली बेकार काबू के ख़ुशी-गम हैं न आह निकली, न ही वाह निकली समझ के सत्य जिसको भी चाहा वो झूठी हर एक चाह निकली ✍️ सीमा कौशिक 'मुक्त' ✍️
वाह।
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dil se shukriya
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