बहुत शानदार सर्जन के लिए ये चार पंक्तियाँ रख रही हूँ, जो तन का ही नहीं मन का इलाज़ करना भी जानते हैं, मीठे व्यवहार से । काश ऐसे मन के सर्जन भी हों.... जाने कैसे सुईं-धागे से ज़ख्मों को सीता रहा अपनी मीठी बातों से दूजे के गम पीता रहा वो तो पूरे होश में भी नहीं, किया दर्द से ज़ुदा निशाँ छोड़ छुप कर उनकी यादों में जीता रहा ✍️ सीमा कौशिक 'मुक्त' ✍️
very nice.
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