जब हम तुम दूर होते हैं बड़े मज़बूर होते हैं उलझे-उलझे हुए जज़्बात वो गुजरे हुए लम्हात वो नैनों में होती बात अनकहे वादों की बरसात बहुत याद आते हैं मध्य हम दोनों के अचानक गायब दुनिया का हो जाना महक चारों तरफ तेरी तेरी सराहना,मेरा लजाना बहुत ही याद आते हैं जब हम तुम दूर होते हैं बड़े मज़बूर होते हैं जब रातें काटे नहीं कटती हर पल तन्हाईयाँ डँसती सहारे के बिना जीवन की डगमग नाव है हिलती सनम याद आते हैं जब हम तुम दूर होते हैं बड़े मज़बूर होते हैं ✍️ सीमा कौशिक 'मुक्त' ✍️