जीवन की शाम में,उम्र के ढलान पे काम और इम्तिहान बाकी हैं । उन्हें उलझाना नहीं चाहती जिनके बिन रह नहीं पाऊँ अपने प्यार करने वालों को क्यों अपने साथ उलझाऊँ ? एक इंतज़ार अब भी बाकी है कुछ साँस अब भी बाकी है समझाऊँ कैसे दिल के किसी कोने में अब भी आस बाकी है ए ज़िन्दगी ! क्या चाहती है तू जीना चाहो तो क्यों तड़पाती है तू न बदलता चाहने भर से कुछ भी पुरजोर कोशिशो-अंजाम बाकी है 'मुक्त' उन्मुक्त उड़ान बाकी है-2 ✍️ सीमा कौशिक 'मुक्त' ✍️