कुचले हुए अरमानो के पंख हो जहाँ कैसे जिए कैसे जिए कोई फिर वहाँ मंज़िल के लिए लेके चले जो राह में ख़्वाबों का मंज़िल पे,न रहा कोई निशाँ ✍️ सीमा कौशिक 'मुक्त' ✍️
Month: December 2022
दिल
हाय रे दिल तेरी मज़बूरियाँ इतने करीब होकर भी दूरियाँ हों आँख बंद तेरी नज़दीकियाँ आँखे खुली दिखी बारीकियाँ ✍️ सीमा कौशिक 'मुक्त' ✍️
ख़्वाब
बस उतनी ही होती है, एक ख़्वाब की उम्र जो वक़्त लगता है, उस के मुकम्मल होने में। देखते हैं हम सभी, ख़्वाब जागते सोते भरपूर जुनून चाहिए, उन्हें मुकम्मल होने में। सही मायने में ज़िन्दगी भी एक ख़्वाब ही है नहीं मिलता कुछ भी इसके मुकम्मल होने में। ख़्वाब अमीर या मशहूर होने का ख़्वाब सब कुछ पाने का शायद रब को भी पाने का ख़्वाब देखते हैं कुछ लोग पूरा होते ही कीमत ख़त्म हुए मसरूफ़ नए ख़्वाब बनाने में। ✍️ सीमा कौशिक 'मुक्त' ✍️
ऊँची उड़ान
अपनी आत्मा से विधान के लिए मत काट-छाँट करिये न झुकाइये, न सींचिये, न कभी तर्क से मज़बूर करिये भरने दो ऊँची उड़ान उसे खुले आसमान में आज़ाद तुम अपने होंसले-जुनून से ख्वाब-ख्वाहिशों का पूरा करिये ✍️ सीमा कौशिक 'मुक्त' ✍️
राज़
प्रभु मेरे जीवन का मधुर साज़ बन जाओ कल परसों नहीं तुम मेरा आज बन जाओ रहे सदा दिल में, आँखों में, इन साँसों में महके हुए अहसासों का राज़ बन जाओ ✍️ सीमा कौशिक 'मुक्त' ✍️
माँ
कोई माँ से प्यारा नहीं,माँ तो है अनमोल मीठी लोरी सा लगे ,उसका हर एक बोल माँ पास हो या दूर हो, दिल के सदा करीब हर किरदार को गढ़ने में माँ का अहम् रोल ✍️ सीमा कौशिक 'मुक्त' ✍️
ज़माना
एक ज़माना था तेरे प्यार को तरसा किये थे हम ये ज़माना है कि भूले हैं !दिल में था भी कोई गम अब न इंतज़ार न आरज़ू न ज़ुस्तज़ू,कोई प्यार की न साथी,न कारवां,न मंज़िल और न ही कोई संगम ✍️ सीमा कौशिक 'मुक्त' ✍️
तेरा
ये ज़मीन तेरी है, ये आशियाँ तेरा तू ही तू है हर-सूं ,सारा जहाँ तेरा छोड़ दे इन चाँद तारों की ख्वाहिश अकाट्य सत्य ! ये सारा आसमाँ तेरा ✍️ सीमा कौशिक 'मुक्त' ✍️
निरंतरता और जुनून
❤️❤️🌹🌹🙏🏻🙏🏻💐💐❤️❤️🙏🏻🙏🏻 आप सब के प्रेम,प्रोत्साहन और अपनेपन की वजह से मैं, "१००१ पोस्ट" इस ब्लॉग पर लिख पायी। एक अजीब सी संतुष्टि का,कुछ कर पाने का अहसास है। सच कहूँ तो खुद पर गर्व सा हो रहा है ,सच में ! हम चाहें तो क्या नहीं हो सकता। बस निरंतरता और जुनून से काम करना है। बाकी तो परमपिता परमात्मा कर ही रहे है, " हमारे भले के लिए हमेशा, हर पल, बिना रुके "। दोहा /278 रोम रोम तुम बस रहे, रोम रोम में धाम। हे परमेश्वर आपको ! ह्रदय से है प्रणाम।। दोहा /279 सदा मुझे सदबुद्धि दो, कार्य करूँ मैं नेक। गर्व से सिर ऊँचा रहे, रहे सुबुद्धि विवेक।। ✍️ सीमा कौशिक 'मुक्त' ✍️ ह्रदय तल से आभार, धन्यवाद, शुक्रिया। ❤️❤️❤️❤️❤️❤️❤️❤️❤️❤️ 🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹 🙏🏻🙏🏻🙏🏻🙏🏻🙏🏻🙏🏻🙏🏻🙏🏻🙏🏻🙏🏻 💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐
राजनीति
रिश्तों में राजनीति हो, या राजनीति से बने रिश्ता ... घर, समाज, या हो देश कभी कोई रिश्ता नहीं टिकता ... चारों ओर समाज में बिखराव है परिलक्षित हर तरफ... अब प्यार, परवाह, अपनापन दूर-दूर तक नहीं दिखता ... ✍️ सीमा कौशिक 'मुक्त' ✍️