जब प्यार के हों सुरूर में ....रहते है ख्यालों में जब रूठ जाएँ वो.... तो उदासी के ख्यालों में लब्बोलुभाव यही है यहाँ ....जो करे इश्क़ वो किसी काम का नहीं रहता !हमेशा ख्यालों में ✍️ सीमा कोशिक 'मुक्त' ✍️
Month: January 2023
संस्मरण-1
आज वो बैठी सोच रही है वो पुराने दिन जब पूर्वी दिल्ली के एक मकान में रहती थी। सबसे बड़ी बेटी होने के साथ माँ पापा की आँखों का तारा जो भाई बहनों की लाड़ली दीदी थी। आपस में प्यार था, खूबसूरत संसार था। उसे नहीं मालूम था हालात इस उम्र तक ये रुख लेंगे कि वो ये गाने पर मज़बूर हो जायेगी "रस्ता न कोई मंज़िल ,दीया है, न कोई साहिल ,ले के चला मुझको 'ए दिल', अकेला कहाँ ! " उसके पापा प्यार तो बहुत करते थे पर महत्वकांक्षी भी थे। मात्र सरकारी आदमी बन कर नहीं रहना था उन्हें। सपने ऊँचे इसीलिए साझेदारी में उन्होंने एक सिनेमा हॉल खोला, जो चल निकला। वो छोटी सी बच्ची जहाँ भी जाती, घर, रिश्तेदार, पड़ोस या स्कूल, खूब प्यार और स्नेह मिलता। लेकिन सब अच्छा ही अच्छा हो तो उसे ज़िन्दगी नहीं कहते। सो ज़िन्दगी ने करवट बदली साझेदारों के मन में लालच आ गया,उसके पापा जो दिन रात उसमें मेहनत करते थे, उनपर ही सवालात उठने लगे और धीरे धीरे काम बंद हो गया। शुक्र है भगवान का पापा ने नौकरी छोड़ी नहीं थी लेकिन क़र्ज़ के बोझ के तले दबते चले गए। घर की छत बिक गयी और किराये के एक कमरे के घर में जाना पड़ा। माँ-बाप और चार भाई बहन जिन्होंने तंगी नहीं देखी थी ,मुस्कुराना भूल गए। पर वो आज भी नहीं भूली, अपने निकट रिश्तेदार( जो साझेदार भी थे ) का घर के बाहर आकर शोर मचाना और पापा को गाली देना। रिश्तों का नया रूप देखा उसने जो रूपये-पैसों से बदल जाता है। छोटी सी उम्र में माँ और पापा को रोते देखना ,कितना असहाय महसूस करती थी वो। आठ वर्ष की उम्र थी उसकी !जैसे-तैसे आटा गूँधती और अपने छोटे भाई बहनों को खिलाती, फिर मम्मी पापा को देती। माँ कहती, "बेटा, पापा को खिलाओ" ,पापा कहते, "माँ को खिलाओ"। वो एक टुकड़ा ज़बरदस्ती पापा को खिलाती और एक टुकड़ा माँ को और प्यार से माँ उसे। और उस दिन उसका अपने माँ बाप से अटूट बंधन बँध गया जिसमे उसने सोचा कि वो कभी ऐसा कोई काम नहीं करेगी जो उसके माँ-पापा को दुःख दे। बाकी का जीवन माँ-पापा की इच्छा से बिता दिया। वो शायद गलत थी। ज़िन्दगी में कुछ फैसले "हाल और हालात" के हिसाब से लिए जाते हैं ना कि भावनाओं में ! पर कहते हैं न "मिले न फूल तो काँटों से दोस्ती कर ली ,इसी तरह से बसर हमने ज़िन्दगी कर ली" धीरे धीरे मम्मी पापा की मेहनत से सब बदलने लगा, कर्जमुक्त होकर पापा ने नौकरी में मन लगाया और फिर से एक बार घर में ख़ुशियाँ चहचहाने लगीं। ✍️ सीमा कौशिक 'मुक्त' ✍️
नासमझ
सब अच्छा ही अच्छा है नासमझ ज़िन्दगी न समझ खुली आँखों का ख़्वाब है कभी भी टूट सकता है सब सुख-दुःख की लहरों में डूबते-उबरते रहते हमारा यकीन यकीनन कभी भी टूट सकता है ✍️ सीमा कौशिक 'मुक्त' ✍️
282.दोहा
अमिट भावना उर रहे, सबसे पाएँ प्यार प्यार बाँटना ही मगर, है जीवन का सार ✍️ सीमा कौशिक 'मुक्त' ✍️
कोई वजह तो होगी
आप के वोट लेकर भी आप के लिए नहीं सोचते वो वादे करके भूले पाँच साल नहीं लौटते वो जो दर्द ख़ुद झेले पर दूसरों का नहीं समझ पाते वो कोई वजह तो होगी ..... आपकी वफ़ा का जवाब वफ़ा से नहीं देते वो अपनी ही धुन में हैं रहते वो लब से कुछ नहीं कहते वो आपका सौ प्रतिशत भी कम पड़ जाए तो प्यार का जवाब भी प्यार से न आये तो कोई वजह तो होगी...... अच्छा करने चलो तो भी विघ्न आ जाएँ तो सारी दुआएँ आसमान से टकरा के लौट आएँ तो जिसको भी अपना मानो वो ही सताये तो सामने लिखे हों सच नहीं पढ़ पाएँ तो कोई वजह तो होगी ..... सबकुछ ठीक होते होते सब बिगड़ जाए तो सुबह के इंतज़ार में रात लम्बी हो जाए तो सब कुछ पाने के बाद भी बेचैनी रह जाए तो कोई वजह तो होगी ..... हर वजह को जान पाने की हसरत हसरत ही रह जाए तो कोई वजह तो होगी ..... ✍️ सीमा कौशिक 'मुक्त' ✍️
पतझड़
मुस्कुराने का मन किसका नहीं होता क्यों दर्दे-दिल मुस्कुराने नहीं देता आँधियों में शाख से गिरते हुए पत्ते, पतझड़ 'दिल का फूल' खिलने नहीं देता ✍️ सीमा कौशिक 'मुक्त' ✍️
रक़्स
यदि दिल पे ज़ारी रहे ग़मों का रक़्स तो उस इंसान के बदलने की वजह न पूछो फिर भी उसे बदलने का इरादा है तेरा तो भरपूर प्यार से उसे सराबोर कर दो ✍️ सीमा कौशिक 'मुक्त' ✍️
पहचान
किसी के दिल बहलाने का..जरिया न बनो नेक बनो तुम मगर ....बहता दरिया न बनो किसी का अहसान .....रहे चाहे कितना भी हो ख़ुद के मालिक, वक़्त की पहचान बनो ✍️ सीमा कौशिक 'मुक्त' ✍️
नशा
हैं नशे कईं जिसके साथ में.......न खुद है होशोहवास में अपनों का ख़्याल रखेगा क्या, वो इस हाले बदहवास में सही चुनने का होश बाकी है गर....चुनो ज़िन्दगी को तुम नशा चुन लेगा वर्ना तुम्हें.............दर्द ही दर्द हर श्वास में ✍️सीमा कौशिक 'मुक्त' ✍️
कहानी
सब कुछ है पास तेरे........फिर भी बेचैनी क्यों है मुस्कान लबों पे .........निग़ाहों में वीरानी क्यों है बिना समझे-बूझे.........ढोये अहसासों की लाशें ग़ज़ब बात ! दिल गढ़ता नयी रोज़ कहानी क्यों है ✍️ सीमा कौशिक 'मुक्त' ✍️