जब अंतस की पीड़ा उठे, नैनन बरसे नीर व्याकुल मनवा पंछी बने, होय उड़ान अधीर फड़कें होंठ, दर्द की उठे, लहर तोड़ कर रीढ़ डटा रहता जो पर्वत-सम, वो ही सच्चा वीर ✍️ सीमा कौशिक 'मुक्त' ✍️
जब अंतस की पीड़ा उठे, नैनन बरसे नीर व्याकुल मनवा पंछी बने, होय उड़ान अधीर फड़कें होंठ, दर्द की उठे, लहर तोड़ कर रीढ़ डटा रहता जो पर्वत-सम, वो ही सच्चा वीर ✍️ सीमा कौशिक 'मुक्त' ✍️