ए रब !हमारी दिली कशिश यूँ ही बनी रहे ये चाहत,मुस्कुराहट,उर बगिया खिली रहे तुम जब भी आओ सामने,ए मेरे हमदम! हों पुरसुकून पल, हमारी रूह महकी रहे ✍️ सीमा कौशिक 'मुक्त' ✍️
ए रब !हमारी दिली कशिश यूँ ही बनी रहे ये चाहत,मुस्कुराहट,उर बगिया खिली रहे तुम जब भी आओ सामने,ए मेरे हमदम! हों पुरसुकून पल, हमारी रूह महकी रहे ✍️ सीमा कौशिक 'मुक्त' ✍️