अंतस की वीणा पर कैसी ,धुन ये प्रीत की गायी जाना मन के तार हुए झंकृत सब.....आयी याद तुम्हारी जाना भूल गई मैं दर्द विरह के...विस्मृत रैन-दिवस हुई तड़पन जब देखा जानम फिर तुमने...बिसरा रूठ के तेरा जाना ✍️ सीमा कौशिक 'मुक्त' ✍️
अंतस की वीणा पर कैसी ,धुन ये प्रीत की गायी जाना मन के तार हुए झंकृत सब.....आयी याद तुम्हारी जाना भूल गई मैं दर्द विरह के...विस्मृत रैन-दिवस हुई तड़पन जब देखा जानम फिर तुमने...बिसरा रूठ के तेरा जाना ✍️ सीमा कौशिक 'मुक्त' ✍️