गद्य गीत

  💐💐 पढ़ियेगा ज़रूर बहुत कुछ सोचने पर करेगा मज़बूर 💐💐
             "तो क्या हुआ "
एक था किसान जी, चलता था सीना तान जी   
देखा क्यों आजकल, झुकी कमर किसान की  
बात ये पता चली ,हवा चली गली-गली 
उसका बेटा फौजी था, देशसेवा करता था 
देश की मिट्टी का, क़र्ज़ अदा करता था 
घर में थी पत्नी, बहू, और एक पोता भी  
ठीक चल रहा था सब, कुछ नहीं परवाह थी 
वक़्त ने ढाया कहर, बिखर गयी शाम-ओ-सहर  
बेटे की मौत की खबर, सीना कंधे झुका गयी 
करुण क्रंदन ह्रदय में, आँसुओं की बाढ़ थी 
देखते ही देखते,  खुशियाँ सारी लुट गयी
बेवा बहू और बेबस माँ, देख कर सिहर गयीं 
वो पूछता था डाल-डाल, कहाँ गया तू मेरे लाल?   
तू तो सहारा था मेरा, तेरी कमी है सालती 
तभी सुनो जी ध्यान से! लाश आयी सम्मान से !
तिरंगे में लिपटी हुई ,सलामी दी सबने शान से
बड़े सम्मान से उसका अंतिम संस्कार किया गया 
सभी ने उसे शहीद का पिता, कह सम्बोधित किया 
अब उस परिवार की बहुत बड़ी पहचान थी 
मीडिया और अखबारवालों की, आ गयी बाढ़ थी 
और इस सम्मान ने, कुछ पल को, मरहम रख दिया 
नम आँखें थी मगर था, सीना गर्व से तना हुआ 
उसे लगा देश के लिए की, कुर्बानी व्यर्थ न जायेगी 
देश की मिट्टी उस के लाल को, कभी भुला न पाएगी 
गम के अँधेरों में यूँ ही,, एक महीना गुज़र गया 
कागज़ी कार्यवाहियों, का काम सर पे आ गया 
ज्यादा पढ़ा-लिखा न था, अधिकारियों से क्या करता बात?
ऑफिसों के रोज़ वो, चक्कर लगाता रहा 
हर कोई कागज़ों में, कमी बताता रहा ,
उनमे से एक बेशर्म था, उसने रिश्वत माँग ली 
दिन का सुकून रातों की नींद सब बेटा ले गया 
देश और समाज जो थकता नहीं था कहते यही 
देशभक्ति  की कीमत सदा ही अमूल्य रही 
इसी पशोपेश में, कंगालियों के वेश में 
खींचता रहा वो दिन, बूढ़ा हुआ वो दिन-ब-दिन 
एक दिन मन में ठानकर वो ऑफिस गया जानकर
अधिकारी से बोला वो शायद नहीं तुम जानते  
शहीद था बेटा मेरा ,देशभक्त था बेटा मेरा 
उसने पलट के जो कहा "तो क्या हुआ "तो क्या हुआ 
यहाँ बहुत शहीदों की है फाइलें अटकी हुईं 
उसका जो कहना 'क्या हुआ' सीधा दिल में उतर गया 
सीना चीयर कर गया वो जार जार कर रोया 
अब कहाँ जाऊं मैं किस तरह निभाऊं मैं 
बेटा मेरा चला गया अब कैसे ज़िन्दगी चलाऊँ मैं 
थके-थके से थे कदम बुझा बुझा सा उसका मन 
एक और वाक़या घर में इंतज़ार उसका कर रहा 
जैसे घर में रखा कदम, पोता भाग आया एकदम 
दादू ! मुझे फौज में जाना है,पिता ने देश के लिए दी जान 
मुझे भी पिता की तरह, फ़र्ज़ अपना निभाना है 
सन्न हो गया बूढ़ा बाप, दहलीज़ पर बैठा उदास 
शून्य में निहारता रहा, हवाओं मे शब्द गूंजते रहे
 "तो क्या हुआ " "तो क्या हुआ" 
कहाँ गया वो मीडिया कहाँ गए अखबार वो 
बड़े बड़े वादे थी कर रही सरकार जो 
अकेला था भटक रहा कोई नहीं है साथ अब 
खोखले वादों पे टिकी ये देश की सरकार जब  
ऑफिसों में अटकी हुई फाइलें हज़ार हैं 
शहीदों के परिवारों की हालत खराब हैं 
ये सत्यकथा मैंने कही क्या आप भी कहेंगे यही 
तो क्या हुआ ! तो क्या हुआ !
         ✍️ सीमा कौशिक 'मुक्त' ✍️

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