मैं अपने भावों को सुंदर, ग़ज़ल में टाँकने निकली बहुत निकली मेरे मन की, पर न हू-ब-हू निकली मैं हूँ मुक्त बंधन से...........रहूँ बहती सरिता-सी बंधन से भला बोलो, कब दिल की ख़ुशी निकली ✍️सीमा कौशिक 'मुक्त' ✍️
मैं अपने भावों को सुंदर, ग़ज़ल में टाँकने निकली बहुत निकली मेरे मन की, पर न हू-ब-हू निकली मैं हूँ मुक्त बंधन से...........रहूँ बहती सरिता-सी बंधन से भला बोलो, कब दिल की ख़ुशी निकली ✍️सीमा कौशिक 'मुक्त' ✍️