उसकी आँखों में प्यार नज़र आता है उसकी चुप में भी राज़ नज़र आता है यूँ तो हमदम साथ रहा है बरसों से बदला-सा पर अंदाज़ नज़र आता है मेरे हाकिम की तरबीयत क्या ईमान बदमाशों का सरताज नज़र आता है फ़क़त शिखी-सा बनने की करता कोशिश पर समझो तो डरपोक नज़र आता है ✍️सीमा कौशिक 'मुक्त' ✍️
Author: seemakaushikmukt
Seema Kaushik is a poet based in Faridabad, India. She is an engineering graduate, who spent most of her life as a homemaker. After being forced to live according to society’s rules, she has finally discovered her voice in her 50s. Now, she writes to be free.
शोखी
२२२२ २२२२ २२२२ २
दिल की बेचैनी उसकी शोखी में दिखती है
मुस्कानों में भी ठंडी ख़ामोशी दिखती है
जब जब दर्द बढे तो बेतरह खिलखिलाता है
आँखों की वीरानी में मदहोशी दिखती है
मुकम्मल नहीं जग में, बिन ख्वाहिश ना है कोई
सबके दिल की गाड़ी क्यों रुक-रुक कर चलती है
भाव पीर में डूबे तो, विरहा के गीत बने
आँसू बन वो आँखों से मोती-सी ढलती है
इक चाहे है दूजा, क्यों दूजा चाहे तीजा
चक्रव्यूह क्यों ज़ीस्त ये राहों में बुनती है
क्यों हो तुम विचलित आते जाते हालातों से
रोज सुबह मिलता”मौका”जब आँखें खुलती हैं
क्या आज़ादी का मतलब हर नभचर से पूछो
ऊँची उड़ान रहीं पर नींद धरा पर मिलती है
ऊँचे शजरों को देखा बस बात यही समझी
जितना ऊँचा है ,उतनी जड़ गहरी रहती है
✍️सीमा कौशिक ‘मुक्त’ ✍️
वाज़िब
बचाओ रिश्तों को लेकिन, न ख़ुद से हारना वाज़िब मग़र हों ख़त्म ख़्वाहिश और समझौते? गैर-मुनासिब ! ✍️सीमा कौशिक 'मुक्त' ✍️
मुक़द्दस
अहसासे-कमतरी देता..........वो अपना हो नहीं सकता जो रिश्ता बनता न दिल से.......मुक़द्दस हो नहीं सकता बूझो कौन है हरवक्त.............. तेरे भीतर, नहीं तुझसा वो तेरा या किसी का क्या ! जो ख़ुद का हो नहीं सकता ✍️सीमा कौशिक 'मुक्त' ✍️
दोहा.302
हों हर तबके के प्रति, सब संवेदनशील मानवता सबसे बड़ी, करती यही अपील ✍️सीमा कौशिक 'मुक्त' ✍️
सरिता
मैं अपने भावों को सुंदर, ग़ज़ल में टाँकने निकली बहुत निकली मेरे मन की, पर न हू-ब-हू निकली मैं हूँ मुक्त बंधन से...........रहूँ बहती सरिता-सी बंधन से भला बोलो, कब दिल की ख़ुशी निकली ✍️सीमा कौशिक 'मुक्त' ✍️
दवा
मेरे जानेमन........मेरे हमनवा कोई और नहीं....है मेरी दवा अब पीर सहन से है बाहर हुई अब ज़ख्मे-मरहम है तेरा खवा ✍️सीमा कौशिक 'मुक्त' ✍️
कमिटमेंट
कमिटमेंट चाहिए तुमको, तो देनी भी पड़ती है हर ख़ुशी प्रेम व गम की, भरपाई करनी पड़ती है कोई लिव-इन में रहे या, रहे कर के अजी शादी निभाई करनी पड़ती थीं, निभाई करनी पड़ती है ✍️सीमा कौशिक 'मुक्त' ✍️
दोहा.301
रहें सचेत चुनाव में......रखें न मन संताप गलत चयन हो तो ह्रदय...रहता पश्चाताप ✍️सीमा कौशिक 'मुक्त' ✍️
ज़िन्दगी
शतरंज की बिसात पर ..ज़िन्दगी का खेल कुछ यूँ रहा मज़बूर हैं खेलने को हम............मात पहले से मुक़र्रर ✍️सीमा कौशिक 'मुक्त' ✍️