*दर्द सहन से हो परे, नहीं प्रीत को प्रीत* *कैसा मायाजाल ये, अजब जहाँ की रीत*।। ✍️ सीमा कौशिक 'मुक्त' ✍️
Author: seemakaushikmukt
Seema Kaushik is a poet based in Faridabad, India. She is an engineering graduate, who spent most of her life as a homemaker. After being forced to live according to society’s rules, she has finally discovered her voice in her 50s. Now, she writes to be free.
223.दोहा
दर्दे-दिल पर जीत हो, होठों पर मुस्कान सब के दिल में वो बसे, करे नहीं अभिमान ✍️ सीमा कौशिक 'मुक्त' ✍️
ज़ख्म
दर्द उठता रहा ये ज़ख्म रिसते रहे हम तेरी आरज़ू में यूँ पिसते रहे हमको मर-मर के जीना रास आ गया वक़्त की सिल पे हम खुद को घिसते रहे ✍️ सीमा कौशिक 'मुक्त' ✍️
222.दोहा
*अंतस की पीड़ा रही, अनदेखी हर बार*। *राह दिखे कोई मुझे , हो भवसागर पार*।। ✍️ सीमा कौशिक 'मुक्त' ✍️
221.दोहा
*कोई है यदि नासमझ, लड़ने की ले ठान* *निश्चित युद्ध हुआ तभी, हारे है मुस्कान* ✍️ सीमा कौशिक 'मुक्त' ✍️
220.दोहा
*सावन की रिमझिम हुई, हरियाली चहुँ ओर* *तन-मन भीगे प्रेम में, महका हिय का कोर* ✍️ सीमा कौशिक 'मुक्त' ✍️
219.दोहा
*सबकी अपनी शख़्सियत, है अपनी पहचान*। *अपनी-अपनी है नज़र, अपना-अपना ज्ञान*।। ✍️ सीमा कौशिक 'मुक्त' ✍️
218.दोहा
*मेघ घिरे बूँदें पड़ीं, तप्त धरा है शांत* *व्याकुल मनवा शांत-सा, तके राह तिमिरांत* ✍️ सीमा कौशिक 'मुक्त' ✍️
217.दोहा
*छुप-छुप दुनिया की नज़र, ग़लत करें आचार* *पकड़ो तो वो चोर हैं, वरना साहूकार* ✍️सीमा कौशिक ‘मुक्त’✍️
216.दोहा
छोड़ो भी अब छेड़ना, जुड़े ह्रदय के तार प्रीत देत दस्तक प्रिये, खोलो मन के द्वार ✍️ सीमा कौशिक 'मुक्त' ✍️