जब पत्थर पे सिँदूर लगओ, वो देवता बन जाता है। असल में तो वो 'पत्थर' ही है --- (सावित्री बाई फुले,पहली महिला शिक्षिका) ये बात अलग सन्दर्भ में है, पर खेल सारा भावनाओं का है -------- ताकत हमेशा तुम्हारी भावनाओं में ! कल भी और आज भी भावनाओं से पत्थर में भगवान, प्रगट कर दोगे तुम आज भी करो स्व-भावनाओं का कर्म से सही समन्वय ! देखो तो सही मानो तो जीवन में अप्राप्य कुछ भी नहीं, कल भी और आज भी ✍️ सीमा कौशिक 'मुक्त' ✍️
Author: seemakaushikmukt
Seema Kaushik is a poet based in Faridabad, India. She is an engineering graduate, who spent most of her life as a homemaker. After being forced to live according to society’s rules, she has finally discovered her voice in her 50s. Now, she writes to be free.
281.दोहा
सरस्वती माँ ने रखा, मस्तक वरदा-हस्त । भाव निरंतर उर बहें, सिद्ध लेखनी मस्त ।। ✍️ सीमा कौशिक 'मुक्त' ✍️
वीर
जब अंतस की पीड़ा उठे, नैनन बरसे नीर व्याकुल मनवा पंछी बने, होय उड़ान अधीर फड़कें होंठ, दर्द की उठे, लहर तोड़ कर रीढ़ डटा रहता जो पर्वत-सम, वो ही सच्चा वीर ✍️ सीमा कौशिक 'मुक्त' ✍️
विकल्प
रख चींटी सा हौंसला, हाथी मन मज़बूत सोच सदा ऊँची रहे, दिल में प्रेम अकूत दिल में प्रेम अकूत, सदा मीठी हो वाणी रब का यही सबूत, साँस चलती है प्राणी यश फैले दिन-रात, सफलता का फल चख कहे 'मुक्त' ये बात, हार न कभी विकल्प रख ✍️ सीमा कौशिक 'मुक्त' ✍️
मधु
जब उसका हाथ---- हाथों में होता है सारा संसार इन---- आँखों में होता है इठलाता है नसीब,उछलता है ये दिल मुखड़े पे नूर ,मधु ----बातों में होता है ✍️सीमा कौशिक 'मुक्त' ✍️
नकार
उसने अगर अब तक का किया नकार दिया जब दिया तुझको तो.. काँटों का हार दिया सफर में अकेला है तू,.......... दूर है मंज़िल मुस्कुरा ! तुझे तेरी ........ख़ुदी से वार दिया ✍️ सीमा कौशिक 'मुक्त' ✍️
हुकूमत
हर स्वार्थी ज़ालिम अहंकारी को चाहिए सीधे सरल सहज इंसान हुकूमत के लिए न मुँह में जबान,न अक़्ल और न स्वाभिमान रोज़ सताने को अपनी दिलजोई के लिए ✍️ सीमा कौशिक 'मुक्त' ✍️
अच्छी नहीं
चुपके चुपके धीरे से दिल में समाते चले गए घुसपैठ अच्छी नहीं ये नैनो के रास्ते आहिस्ता दिल में उतरते चले गए सेंधमारी अच्छी नहीं ये डाली आदत जो धीरे धीरे हर पल साथ रहने की आशिक़ी अच्छी नहीं ये अभी वो तुम्हें समझती नहीं, तुम समझते चले गए नासमझी अच्छी नहीं ये ✍️ सीमा कौशिक 'मुक्त' ✍️
आज
आज इंतज़ार किया तो जाना -----है इंतज़ार क्या आज तनहा हुए तो जाना------ है दिल बेकरार क्या रात बेचैनी मे कटी -------------इंतज़ार में गिने तारे आज समझा किये फ़क़त हम प्यार क्या ज़ज़्बात क्या ✍️ सीमा कौशिक 'मुक्त' ✍️
औरत
क्या औरत के बिन घर घर होता है जहाँ सिर्फ तन्हाइयों का डर होता है जहाँ होती है अपनेपन की कमी जहाँ दिन-रात बस बसर होता है क्या ---- जहाँ न सफाई न खाने की शुद्धता जहाँ तन मैला मन अशुद्ध रहता है जहाँ घर सांय-सांय,आपस में भाँय - भाँय दिल में दर्द का डेरा रहता है क्या------ दुनिया को अकेले झेलना उसकी विकृत मानसिकता के साथ बेबसी और नशे का चंगुल जीवन में अदृश्य अँधेरा रहता है क्या -------- कोई प्यार से जब उस घर में जाए दिलको सन्नाटा महसूस होता है इक कमी का अहसास हरसूँ खालीपन ठहाकों में होता है क्या -------- ✍️ सीमा कौशिक 'मुक्त' ✍️