दोहा.302

हों हर तबके के प्रति, सब संवेदनशील 
मानवता सबसे बड़ी, करती यही अपील  
         ✍️सीमा कौशिक 'मुक्त' ✍️ 

दोहे .295-299

दोहे चाय पर ---
१/ सूरज उगते माँगते, चाय पति महाराज 
देर ज़रा सी हो अगर, गिर सकती है ग़ाज
 
२/ दिनभर चाय नहीं मिले, टूटे सर्व शरीर 
चाहें छप्पन भोग हों, पूरी हो या खीर 

३/ चाय की रहे चुस्कियाँ, हो यारों का साथ 
अपनापन दूना बढ़े, मिले हाथ को हाथ
 
४/नशा किसी भी चीज़ का, होता बड़ा खराब 
गुटखा कॉफ़ी चाय हो, या फिर होय शराब
 
५/ पदार्पण हो शाम का, और हाथ में चाय 
नैन-नैन में बात हो, दिल में प्रीत समाय 
        ✍🏻 सीमा कौशिक 'मुक्त'✍🏻