अपने स्वार्थ से भरे, दिखे तिरस्कृत भाव जब भीतर कुछ टूटता,नहीं भरे फिर घाव ✍️ सीमा कौशिक 'मुक्त' ✍️
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287.दोहा
प्रज्ञा जाग्रत हो तभी, मन में हो सम भाव हर क्षण हो आनंद फिर,जलता ज्ञान अलाव ✍️ सीमा कौशिक 'मुक्त' ✍️
286.दोहा
परपीड़ा से जो मना, व्याकुल हो दिन-रात हीरा समाज का वही , सब पर रहे उदात्त ✍️ सीमा कौशिक 'मुक्त' ✍️
285.दोहा
मृत्यु खड़ी है सामने,दिल में रहे दुभाँत स्व-मंगल की राह में, मिलती पिछली पाँत ✍️ सीमा कौशिक 'मुक्त' ✍️
दोहा.284
हर नारी को चाहिए, सम्पूर्ण सम्मान लेकिन किन्तु परन्तु का, इसमें कब है स्थान ✍️ सीमा कौशिक 'मुक्त' ✍️
दोहा.283
क्यों विधाता ने रचा, ये अद्भुत संसार जब जब बैठी सोचने, सदा मिली है हार ✍️ सीमा कौशिक 'मुक्त' ✍️
282.दोहा
अमिट भावना उर रहे, सबसे पाएँ प्यार प्यार बाँटना ही मगर, है जीवन का सार ✍️ सीमा कौशिक 'मुक्त' ✍️
281.दोहा
सरस्वती माँ ने रखा, मस्तक वरदा-हस्त । भाव निरंतर उर बहें, सिद्ध लेखनी मस्त ।। ✍️ सीमा कौशिक 'मुक्त' ✍️
280.दोहा
प्यार रहा संवेदना, प्यार रहा आधार ये उथला दरिया नहीं, सागर सा है प्यार ✍️ सीमा कौशिक 'मुक्त' ✍️
निरंतरता और जुनून
❤️❤️🌹🌹🙏🏻🙏🏻💐💐❤️❤️🙏🏻🙏🏻 आप सब के प्रेम,प्रोत्साहन और अपनेपन की वजह से मैं, "१००१ पोस्ट" इस ब्लॉग पर लिख पायी। एक अजीब सी संतुष्टि का,कुछ कर पाने का अहसास है। सच कहूँ तो खुद पर गर्व सा हो रहा है ,सच में ! हम चाहें तो क्या नहीं हो सकता। बस निरंतरता और जुनून से काम करना है। बाकी तो परमपिता परमात्मा कर ही रहे है, " हमारे भले के लिए हमेशा, हर पल, बिना रुके "। दोहा /278 रोम रोम तुम बस रहे, रोम रोम में धाम। हे परमेश्वर आपको ! ह्रदय से है प्रणाम।। दोहा /279 सदा मुझे सदबुद्धि दो, कार्य करूँ मैं नेक। गर्व से सिर ऊँचा रहे, रहे सुबुद्धि विवेक।। ✍️ सीमा कौशिक 'मुक्त' ✍️ ह्रदय तल से आभार, धन्यवाद, शुक्रिया। ❤️❤️❤️❤️❤️❤️❤️❤️❤️❤️ 🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹 🙏🏻🙏🏻🙏🏻🙏🏻🙏🏻🙏🏻🙏🏻🙏🏻🙏🏻🙏🏻 💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐