रह रह के दिल दर्द से भरता क्यों है सब कुछ है पर दिल में उदासी क्यों है सबकी कमियों पे रुक जाती है नज़र या रब जहाँ में प्यार की कमी क्यों है दर्द देना सहना इन्सां की आदत ठहरी फिर दर्द से इतना दिल दुखता क्यों है बदनामी का तोहफा इक दूजे को यहाँ हर चेहरे पे चेहरा क्यों है बिखरी है जमाने में ख़ुशियाँ हरसूँ फिर दिल पे मायूसियों का पहरा क्यों है ✍️ सीमा कौशिक 'मुक्त' ✍️
Category: ghazal
मासूम
मासूम हम हैं वो बन रहे हैं तीरे-नज़र फिर क्यों तन रहे हैं ... हमें समझ न सके तुम अब तक क्यों बेवजह अपने बन रहे है... हमें न हिम्मत गिनाएँ गलती हमारी गलती वो गिन रहे हैं ... प्यार के दो लफ्ज़ सुन न पाए ज़माने भर की हम सुन रहे हैं ... जले ख्वाब आँखों के सामने पर ख्वाब हम अब भी बुन रहे हैं ... हमें किसी से नहीं शिकायत दुनिया नहीं रब को चुन रहे हैं ... ✍️सीमा कौशिक 'मुक्त' ✍️
ख़ंज़र
पेशे खिदमत है ये ग़ज़ल आपके लिए मीटर -२२१२ २२१२ २२ " ख़ंज़र " भूला न दिल, बिसरे न वो मंज़र जो पीठ पर घोंपा मिरे ख़ंज़र ।। मासूम दिल ऐसे हुआ खाली जैसे ज़मीं होती रही बंजर ।। आया ज़बाँ पर ज़िक्र तिरा क्यों कर मौसम समय जब ख़ुद न राह-गुजर।। गुज़रा वक़्त चाही महरबानी मज़बूत हम हैं मत कहो जर्जर।। कैसे खिलेंगे गुल गुलिस्ताँ में माली लगाता हो जब बदनज़र।। हैं 'मुक्त' को न सहन अजी मसले वो है अड़िग ज्यों हो मज़बूत शजर।। ✍️ सीमा कौशिक 'मुक्त' ✍️
अनमोल
ज़िन्दगी अनमोल है, सदा ज़िन्दगी को चुनो । गम की अँधेरी रात में, बढ़ते रहना ही चुनो ।। आँधियाँ तूफ़ान रस्ता रोकलें कितना मगर । हार न मानो हमेशा , उनसे लड़ना ही चुनो ।। दिल की हर आवाज़ को, क्यों अनसुना करते रहे । मोल जानोगे अगर, फिर ना करोगे अनसुना।। सोच की दलदल में फँसना, है सिरे से ही वृथा। दुनिया बदलने की जगह, ख़ुद को बदलना ही चुनो ।। क्या सज़ा दोगे किसी को, क्यों हो तुम सबसे नाराज़। आज अब अनमोल है, बस आज और अब चुनो।। ✍️ सीमा कौशिक 'मुक्त' ✍️
तेरी याद
विषय-बहर आधारित गजल काफिया-आती रदीफ- है। बहर =2 2 2 2 2 2 2 २ =१६ वो कुछ ऐसे भरमाती है चीज़ बनी वो सौगाती है उनका रिश्ता ऐसे लगता जैसे दीपक औ बाती है दूर रहे वो पास न आये दिल जेहन पर छा जाती है सब सच झूठ कहाँ पहचाने इतना मीठा बतियाती है दर्द विरह में ऐसे उमड़ा विरहन की फटती छाती है मन तुम संग लगा यूँ जाना सुधबुध तक अब बिसराती है मिलना उससे तो तुम कहना तेरी याद बहुत आती है ✍️ सीमा कौशिक 'मुक्त' ✍️
अधिकार
कहीं भी मैं चली जाऊँ कहूँ क्या याद आने में जलाने के नए किस्से बहाने भी बनाने में कसम खाने खिलाने के बहाने दिल लुभाना क्यों ज़माना भी बुरा लगता हमें हँसने हँसाने में समझ पाओ अजी समझो, नहीं अधिकार तुम्हारा मगर क्यों वारते हो दिल हमारे मुस्कुराने में लुभाने को बहुत हैं तितलियाँ सारे जहाँ मालिक मज़ा क्या है उँचाई से किसी को भी गिराने में इसे मेरी ज़ुबानी प्यार का इज़हार मत समझो बड़ा आता मुझे गुस्सा तुझे अपना बताने में ✍️सीमा कौशिक 'मुक्त' ✍️