धुली धुली सी है धरा, धुला धुला सा है गगन तप्त हवाएँ सर्द हुईं ....खिल उठा ह्रदय सुमन है पात पात धुल गया, महक उठा सारा चमन आसमाँ को एकटक.........निहारते मेरे नयन ✍️सीमा कौशिक 'मुक्त' ✍️
Category: Kavita
मेरा बेटा
मेरा बेटा मेरा दिल मेरा अहसास मेरे दिल की धड़कन, है मेरी श्वास वो हर बार हर परिस्थिति में अलग ही किरदार निभाता है कभी माँ कभी बाप कभी भाई कभी दोस्त और बेटा तो वो है ही वो माँ बन जाता है जब प्यार से सर सहलाता है वो बाप बन जाता है जब गलती पर समझाता है वो भाई बन सारे अहसास साझा करता है वो मेरा सबसे अच्छा दोस्त है जो मुझे सिर्फ समझता नहीं मार्ग दर्शन भी करता है समझ नहीं पाऊँ मैं वो कैसे दूर तक सोच और देख पाता है हर गम ज़माने का भूल जाती हूँ जब उसे गले लगाती हूँ वो तो मेरा प्यारा बेटा है पता नहीं मैं उतनी अच्छी माँ हूँ या नहीं भगवान का सुन्दर उपहार, उसका प्यार! अपने प्रति प्यार देख उसी के लिए डरती हूँ या रब !उसके जीवन को खुशियों से भर दे ! लबों पे मुस्कान दे ! दुनिया में नाम दे ! उसे कभी कोई कमी न हो ! सदा सदबुद्धि रहे और रहे तेरा आर्शीवाद भी ! उसके लिए मेरी दुआएँ कबूल हों !आमीन ! ✍️ सीमा कौशिक 'मुक्त' ✍️
मयस्सर
वो लम्हें नहीं मयस्सर,जिन्हें सीने से लगा लूँ आ पास आ ज़िन्दगी, आ गले तुझे लगा लूँ कब रात आयी कब दिन, कब हुई सुबह-ओ-शाम कैसे गुज़रा वक़्त है ये, इसे कैसे मैं बचा लूँ इस दिल ने चाहा जो भी, वो मिला नहीं कभी भी दिल रोये और चीखे, इसे कैसे मैं मना लूँ मेरे दर्द की दवा भी, किसी सूरत हो न पायी ये वक़्त बने मरहम, थोड़ा मैं भी मुस्कुरा लूँ आसान है दर्द में, सुन 'मुक्त' यूँ कराहना हिम्मत से मुस्कुरा कर, दोनों जहाँ बना लूँ ✍️सीमा कौशिक 'मुक्त' ✍️
देशभक्त
देशभक्तों की आँखों में, अंगार शोभा नहीं देता होंठों पर नफरत का ज़हर, शोभा नहीं देता आप धार्मिक हैं तो, धर्म भी समझा करिये धर्म के नाम पर, दंगा शोभा नहीं देता कौन हैं वो लोग जो, नफरत की करें पैरवी ऐसे लोगों का साथ, हमें शोभा नहीं देता इंसानियत का धर्म, सब धर्मों से है ऊपर इसकी अवमानना का रवैया, शोभा नहीं देता दूसरों के दिल पर, दर्द की दस्तक मत दो वर्ना ख़ुद दर्द में कराहना, भी शोभा नहीं देता सदियों से गुरुओं पैगम्बरों ने, दिया जो सन्देश उसे बहकावे में भुलाना, हमें शोभा नहीं देता
माँ से बातें
कितना मुश्किल है बड़ी उम्र में माँ से बातें करना कहीं दिल की मायूसी का उन्हें आभास न हो कईं ख़्वाब जो टूटे समाज में इज़्ज़त रखते आवाज़ की भर्राहट में ये उन्हें अहसास न हो माँ को देखते ही माँ से बस लिपट जाना नमी आँखों की छुपाने का विफल कहीं प्रयास न हो कहने को तो कह सकते हैं माँ से दिल की पर उनकी उम्र बीमारी और प्यार, कहीं माँ के दिल टूटने का त्रास न हो कितना मुश्किल है बड़ी उम्र में माँ से बातें करना
ठीक हूँ माँ
मेरे टूटे हुए दिल और ख़्वाबों की किरचें माँ को न चुभ जाएँ कहीं वो मुस्कुराते हुए बोली ठीक हूँ माँ ... एक उम्र गुजारी माँ बाप की इज़्ज़त रखने में सब्र का बाँध टूट न जाए कहीं पूरी जान लगा कर बोली ठीक हूँ माँ ... बहुत बार दिल किया गले लग के कह दूँ वो सारी बातें जो जमती रहीं दिल में पर माँ को कुछ हो जाने का डर उसने तसल्ली दी ,बोली ठीक हूँ माँ ... पर कभी कभी लगा बस बहुत हुआ आज नहीं कह पाऊँगी जो हमेशा कहा ठीक हूँ माँ ... मेरे लब ही न खुले और माँ बिनकहे सब समझती और समझाती रही और चला अनवरत ये कहना ठीक हूँ माँ ...
ध्यान
चाहे जितनी भी दूरी थी चाहे कितनी मज़बूरी थी पास रहे फिर भी दूरी थी तेरे होने का अहसास रहा मुझे अक्सर तेरा ध्यान रहा कब कैसे बच्चे बड़े हुए अपने शत्रु बन खड़े हुए कब सेहत ने दिया धोखा दिल ने बार बार रोका मुझे अक्सर तेरा ध्यान रहा इक छोटा सा घर बनाना था प्यार से उसे महकाना था कभी पूर्ण स्वप्न कर पाओगे दिल खोल मुझे अपनाओगे मुझे अक्सर तेरा ध्यान रहा टूटे बिखरे सपने मेरे आधी अधूरी ख्वाहिश हैं माँ बाप जहाँ को छोड़ गए बच्चों का अपना जीवन है मुझे अक्सर तेरा ध्यान रहा हालात रहे चाहे जैसे कभी ऐसे या कभी वैसे बस तेरा ही आह्वान रहा मुझे अक्सर तेरा ध्यान रहा ✍️सीमा कौशिक 'मुक्त' ✍️
अधिकार
कहीं भी मैं चली जाऊँ कहूँ क्या याद आने में जलाने के नए किस्से बहाने भी बनाने में कसम खाने खिलाने के बहाने दिल लुभाना क्यों ज़माना भी बुरा लगता हमें हँसने हँसाने में समझ पाओ अजी समझो, नहीं अधिकार तुम्हारा मगर क्यों वारते हो दिल हमारे मुस्कुराने में लुभाने को बहुत हैं तितलियाँ सारे जहाँ मालिक मज़ा क्या है उँचाई से किसी को भी गिराने में इसे मेरी ज़ुबानी प्यार का इज़हार मत समझो बड़ा आता मुझे गुस्सा तुझे अपना बताने में ✍️सीमा कौशिक 'मुक्त' ✍️
राहत
हालातों का गुलाम 'दिल', राहतों का तलबगार रहा उलझी रही ज़िन्दगी मेरी, उलझा सा किरदार रहा कौन चाहता है अपने, दर्देदिल की नुमाइश करना बर्दाश्त से बढ़ने लगा दर्देदिल, तभी चीत्कार रहा ज़िन्दगी के मंच पे बदहवास खड़े हम सोचा किये कसूर हमारा ही था क्या, जो जीना सोगवार रहा स्कूलों में जीवन जीने का हुनर भी सिखाया जाए इस हुनर के बिना हमारा जीना हर तरह दुश्वार रहा सीधा सच्चा होना इस दुनिया में गुनाह सबसे बड़ा या रब ! यही गुनाह हमसे क्यों यहाँ बारम्बार हुआ हमने छोड़ दिया पुरानी बातों यादों किस्सों को मगर उनका हमें छोड़ने से हर बार क्यों इंकार रहा अच्छे लोगों आओ जियें भरपूर नयी दुनिया बसायें, हमारा ही हर बार इक इक से यही इसरार रहा
हरियाणा का खेल योगदान
हरियाणा की माटी महान, देती दुग्ध और खाद्यान्न कृषि, खेल, सैन्य सेवाएँ ,देती ऊँची इसे पहचान निडर रहें हर आपद में, सीधे सच्चे यहाँ के लोग 'हरियाणवी' 'मेवाती' 'बृजभाषा' 'बागरी'भाषा बोलें लोग हरियाणा की माटी महान, देती दुग्ध और खाद्यान्न खिलाडी''सैनिक' घर-घर में जन्में, नित नव छूते हैं आयाम खेलों में उत्कृष्ट हरियाणा, लाता आये दिन 'पदक' इनाम लाजवाब खेलनीति यहाँ पर, स्कूल स्तर से ही मिले प्रशिक्षण सब राज्यों को पीछे छोड़ा, खिलाड़ी कर रहे कमाल का काम हरियाणा की माटी महान, देती दुग्ध और खाद्यान्न स्वर्ण, रजत व् कांस्य पदक लाकर, पाया सब राज्यों से ऊँचा मुकाम ओलम्पिक, कामनवेल्थ व एशियन खेलों में, गूँजे हरियाणा का नाम कुश्ती, मुक्केबाजी, हॉकी, कबड्डी, खेलों में ये सबसे ऊपर देश ही नहीं दुनिया में जाने-माने, सभी लोग हरियाणा का नाम हरियाणा की माटी महान, देती दुग्ध और खाद्यान्न खिलाडियों को सुविधाएँ मिलती, मिलता खुले दिल से इनाम 'दो फीसदी'आबादी देश की, खेलों में करे 'पच्चीस फीसदी'काम कुरुक्षेत्र को भूले कोई कैसे, विश्व ने पाया यहाँ कृष्ण से गीता ज्ञान इतिहास में बड़ा हरियाणा का नाम, पुरातन सभ्यता का है ये स्थान हरियाणा की माटी महान, देती दुग्ध और खाद्यान्न ✍️सीमा कौशिक 'मुक्त' ✍️