खुद को इस ज़माने में, साबित करना ज़रूरी है कोई चाहे न चाहे, दर्द से गुजरना ज़रूरी है हवा खिलाफ हो तो भी, लड़ेंगे पूरे दम से हम हों आँसू भरी आँखें, मुस्कुराना ज़रूरी है ताकत के नशे में वो, अब खुद पर ही मोहित है रखनी है हमे हिम्मत, औकात बताना ज़रूरी है शिखर तो चाहते हैं सभी ,योग्य होना ज़रूरी है अंजाम कुछ भी हो, आदर्शों पे टिकना ज़रूरी है ✍️सीमा कौशिक 'मुक्त' ✍️
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हाल
जिस हाल में रब रखे उस हाल में रह लो तुम कुछ दिल की सुन लो कुछ दिल की कह लो तुम जिस हाल में रब रखे... क्यों दर्द से डरते हो-3 इस दर्द को सहलो तुम सामनेवाले की-2 मुस्कान चली जाए-2 भूल के भी ऐसा कोई बोल न बोलो तुम जिस हाल में रब रखे... सबके जीवन में, ऐसा क्षण आता है -3 रस्सी साँप बनती, -3 और दिल घबराता है -2 खुद पे भरोसा रख, आगे कदम बढ़ाओ तुम-2 जिस हाल में रब रखे... ✍️सीमा कौशिक 'मुक्त' ✍️
भूलना(हास्य व्यंग)
सुन मेरे प्यारे पति, बिगड़ेगी तेरी गति तेरी भूलने की लत, हमें न स्वीकार है बाहर घुमाना भूले, पैसे देने भूलते हो जन्मदिन भूलने की, आदत बेकार है हमने कब से कहा, सिनेमा दिखा दो पर भूलने का ढोंग कर, बने होशियार हैं पैसे, भेंट, जन्मदिन, सिनेमा तो सह लिया भूलने की लत भुला, देने को तैयार हैं सुंदर नारी देखी तो, डाल देते हथियार अपनी पत्नी तक भूल, जाने को तैयार हैं बजाए हैं खूब गाल, गलेगी न तेरी दाल बैंड तेरा बजाने को, हम भी तैयार हैं ✍️ सीमा कौशिक 'मुक्त' ✍️
प्यास
कईं बार ऐसा हुआ साथ सबके जो चाहा हमने मिला भी लेकिन हमारे दिल की प्यास बुझी नहीं है सोचें क्यों प्यास झूठी हो रही है... कभी ये लगता है इससे बुझेगी कभी ये लगता कुछ और ही पा लें रही दिल की तिश्नगी ऐसी साहब व्याकुलता बस दिनोदिन बढ़ रही है ... क्यों समझते नहीं सभी भ्रम ये, इंद्रजाल में उलझे उलझे हम हैं सही नहीं रहा माया में उलझना झूठे जग में प्यास झूठी हुई है ... अपनी प्यास की सार्थकता जानो अपनी प्यास का उदगम पहचानो झूठी प्यास के पीछे यूँ न भागो सुन ये प्यास ही झूठी हो रही है.... ✍️सीमा कौशिक 'मुक्त' ✍️
कृष्ण जन्म
🌹🌹🙏🏻🙏🏻आप सबको जन्माष्टमी की हार्दिक शुभकामनाएँ ! हाथी, घोडा, पालकी जय कन्हैया लाल की !🌹🌹🙏🏻🙏🏻 🌹🌹सुनो कृष्ण जन्म का हाल मथुरा कारागार बदहाल देवकी माँ की प्रसव पीड़ा वासुदेव हो रहे विह्वल बरखा हो रही ऐसे लगा फिर न होगा कल तभी हुई आकाशवाणी जो वासुदेव ने मानी अचानक गूंजीं किलकारी टूटे बंधन सारे भारी सो गए प्रहरी सारे खुल गए जेल के किवाड़े रखे टोकरी में कान्हा नदी पार करके जाना जैसे पाँव नदी में डाला जल लेने लगा उछाला जल गले तक आया मन उनका घबराया यमुना चाहे पाँव छूना जल बढ़ा कई गुना बारिश से कान्हा बचाया शेषनाग ने की छाया जैसे चरण हुए स्पर्श नदी को हुआ अपार हर्ष उसने बनाया रास्ता कान्हा मंद मुस्काता प्रभु का हुआ अवतरण प्रकृति को हुआ आनंद कान्हा यशोदा गोद आये थे वो देवकी के जाए प्रभु की महिमा अपरम्पार गाये जो हो जाए भवपार 🌹🌹 ✍️सीमा कौशिक 'मुक्त'✍️
रक्षाबंधन
रक्षाबंधन की आप सबको बहुत बहुत बधाई ! 🙏🏻🙏🏻🌹🌹 ह्रदय प्रेम से भरा तो ये कविता ज़ेहन में उभरी !🤗 ईश्वर सभी के भाइयों एवं बहनों पर सदैव अपनी कृपा बनाये रखें ! 🙏🏻🙏🏻🌹🌹 🌹🌹आओ मेरे प्यारे भाई, सजा दूँ मैं सुदृढ़ कलाई माथे पर तेरे तिलक सजा दूँ अक्षत रोली चन्दन लगा दूँ तुम हो मेरी माँ के जाये तुम पर न कभी विपदा आये🌹🌹 🌹🌹आ ले लूँ मैं तेरी बलैयाँ तुमपर सदा रहे सुख छइयां प्रभु कृपा का पहरा लगा दूँ अपनी दुआओं का कवच पहना दूँ रहा खड़ा संग मेरे तू भाई मैंने जब आवाज़ लगाई 🌹🌹 आओ मेरे प्यारे भाई, सजा दूँ मैं सुदृढ़ कलाई ✍️सीमा कौशिक 'मुक्त' ✍️
पहरा
रह रह के दिल दर्द से भरता क्यों है सब कुछ है पर दिल में उदासी क्यों है सबकी कमियों पे रुक जाती है नज़र या रब जहाँ में प्यार की कमी क्यों है दर्द देना सहना इन्सां की आदत ठहरी फिर दर्द से इतना दिल दुखता क्यों है बदनामी का तोहफा इक दूजे को यहाँ हर चेहरे पे चेहरा क्यों है बिखरी है जमाने में ख़ुशियाँ हरसूँ फिर दिल पे मायूसियों का पहरा क्यों है ✍️ सीमा कौशिक 'मुक्त' ✍️
मासूम
मासूम हम हैं वो बन रहे हैं तीरे-नज़र फिर क्यों तन रहे हैं ... हमें समझ न सके तुम अब तक क्यों बेवजह अपने बन रहे है... हमें न हिम्मत गिनाएँ गलती हमारी गलती वो गिन रहे हैं ... प्यार के दो लफ्ज़ सुन न पाए ज़माने भर की हम सुन रहे हैं ... जले ख्वाब आँखों के सामने पर ख्वाब हम अब भी बुन रहे हैं ... हमें किसी से नहीं शिकायत दुनिया नहीं रब को चुन रहे हैं ... ✍️सीमा कौशिक 'मुक्त' ✍️
इन्तज़ाम
क्या कहूँ इस दर्द का रब सही इन्तज़ाम कर, दर्द ख़त्म कर या फिर महसूसियत तमाम कर ये दीवाना ही रहा दिल माने न बात जी न दिल की हुकूमत हो और न एहतराम कर ✍️सीमा कौशिक ‘मुक्त’ ✍️
अनमोल
ज़िन्दगी अनमोल है, सदा ज़िन्दगी को चुनो । गम की अँधेरी रात में, बढ़ते रहना ही चुनो ।। आँधियाँ तूफ़ान रस्ता रोकलें कितना मगर । हार न मानो हमेशा , उनसे लड़ना ही चुनो ।। दिल की हर आवाज़ को, क्यों अनसुना करते रहे । मोल जानोगे अगर, फिर ना करोगे अनसुना।। सोच की दलदल में फँसना, है सिरे से ही वृथा। दुनिया बदलने की जगह, ख़ुद को बदलना ही चुनो ।। क्या सज़ा दोगे किसी को, क्यों हो तुम सबसे नाराज़। आज अब अनमोल है, बस आज और अब चुनो।। ✍️ सीमा कौशिक 'मुक्त' ✍️