अजनबी

मायूसियों के आलम, पकड़ा उम्मीदे दामन 
जब एक अजनबी हमें अपना सा लगा 
हट गयी उदासी चाहत की मीठी दवा सी 
जब कोई अजनबी हमें मरहम सा लगा 
कानो में फुसफुसाया एक गीत गुनगुनाया 
जब एक अजनबी हमें मृदु राग सा लगा 
घनघोर अँधेरे में वक़्त काटे नहीं कटता 
तब एक अजनबी हमें सुनहरी भोर सा लगा 
                ✍🏻सीमा कौशिक 'मुक्त'✍🏻