उसकी आँखों में प्यार नज़र आता है उसकी चुप में भी राज़ नज़र आता है यूँ तो हमदम साथ रहा है बरसों से बदला-सा पर अंदाज़ नज़र आता है मेरे हाकिम की तरबीयत क्या ईमान बदमाशों का सरताज नज़र आता है फ़क़त शिखी-सा बनने की करता कोशिश पर समझो तो डरपोक नज़र आता है ✍️सीमा कौशिक 'मुक्त' ✍️
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वाज़िब
बचाओ रिश्तों को लेकिन, न ख़ुद से हारना वाज़िब मग़र हों ख़त्म ख़्वाहिश और समझौते? गैर-मुनासिब ! ✍️सीमा कौशिक 'मुक्त' ✍️
मुक़द्दस
अहसासे-कमतरी देता..........वो अपना हो नहीं सकता जो रिश्ता बनता न दिल से.......मुक़द्दस हो नहीं सकता बूझो कौन है हरवक्त.............. तेरे भीतर, नहीं तुझसा वो तेरा या किसी का क्या ! जो ख़ुद का हो नहीं सकता ✍️सीमा कौशिक 'मुक्त' ✍️
सरिता
मैं अपने भावों को सुंदर, ग़ज़ल में टाँकने निकली बहुत निकली मेरे मन की, पर न हू-ब-हू निकली मैं हूँ मुक्त बंधन से...........रहूँ बहती सरिता-सी बंधन से भला बोलो, कब दिल की ख़ुशी निकली ✍️सीमा कौशिक 'मुक्त' ✍️
दवा
मेरे जानेमन........मेरे हमनवा कोई और नहीं....है मेरी दवा अब पीर सहन से है बाहर हुई अब ज़ख्मे-मरहम है तेरा खवा ✍️सीमा कौशिक 'मुक्त' ✍️
कमिटमेंट
कमिटमेंट चाहिए तुमको, तो देनी भी पड़ती है हर ख़ुशी प्रेम व गम की, भरपाई करनी पड़ती है कोई लिव-इन में रहे या, रहे कर के अजी शादी निभाई करनी पड़ती थीं, निभाई करनी पड़ती है ✍️सीमा कौशिक 'मुक्त' ✍️
ज़िन्दगी
शतरंज की बिसात पर ..ज़िन्दगी का खेल कुछ यूँ रहा मज़बूर हैं खेलने को हम............मात पहले से मुक़र्रर ✍️सीमा कौशिक 'मुक्त' ✍️
शऊर
आपको है खुद पर गरूर, यहाँ तक तो ठीक है बोलने का न शऊर हो, सोचो क्या वो ठीक है ? ✍️सीमा कौशिक 'मुक्त' ✍️
बेगाने
दर्द पोर-पोर में.............मन मौन इतने शोर में धधकती आग ह्रदय में..सीधी आँख फड़कती याद आये रब की.......हमें मुश्किल हालात में अपनों के बेगानेपन से............आत्मा तड़पती ✍️ सीमा कौशिक 'मुक्त' ✍️
बेरहमी
जो बेरहमी से .............अपनेपन के धागे तोड़े कोई कैसे समझे............. उससे रखें या छोड़ें सबको छोड़ कर जाना ही है,सबकुछ इक दिन मुँह मोड़कर चलें........इससे पहले के वो मोड़े ✍️ सीमा कौशिक 'मुक्त' ✍️