वक़्त की आँच

रुत बदलती रहीं उम्र ढलती रही 
दिल सिसकता रहा रूह तड़पती रही
झूठ में, सॉंच में, वक़्त की आँच में 
मोम के बुत की तरह पिघलती रही 

ज़िन्दगी तू बता, क्या है मेरी खता 
क्यों इस तरह रंग तू बदलती रही

खुशियों की आस में प्यार की प्यास में 
दर्द का क़तरा-क़तरा सटकती रही

मौन के शोर में दर्द हिलोर में 
ज़िन्दगी करवटें ही बदलती रही 

झूठ में, सॉंच में, वक़्त की आँच में 
मुक्ति की चाह में, 'मुक्त' बँधती रही  
             ✍️ सीमा कौशिक 'मुक्त'  ✍️ 

गद्य गीत

  💐💐 पढ़ियेगा ज़रूर बहुत कुछ सोचने पर करेगा मज़बूर 💐💐
             "तो क्या हुआ "
एक था किसान जी, चलता था सीना तान जी   
देखा क्यों आजकल, झुकी कमर किसान की  
बात ये पता चली ,हवा चली गली-गली 
उसका बेटा फौजी था, देशसेवा करता था 
देश की मिट्टी का, क़र्ज़ अदा करता था 
घर में थी पत्नी, बहू, और एक पोता भी  
ठीक चल रहा था सब, कुछ नहीं परवाह थी 
वक़्त ने ढाया कहर, बिखर गयी शाम-ओ-सहर  
बेटे की मौत की खबर, सीना कंधे झुका गयी 
करुण क्रंदन ह्रदय में, आँसुओं की बाढ़ थी 
देखते ही देखते,  खुशियाँ सारी लुट गयी
बेवा बहू और बेबस माँ, देख कर सिहर गयीं 
वो पूछता था डाल-डाल, कहाँ गया तू मेरे लाल?   
तू तो सहारा था मेरा, तेरी कमी है सालती 
तभी सुनो जी ध्यान से! लाश आयी सम्मान से !
तिरंगे में लिपटी हुई ,सलामी दी सबने शान से
बड़े सम्मान से उसका अंतिम संस्कार किया गया 
सभी ने उसे शहीद का पिता, कह सम्बोधित किया 
अब उस परिवार की बहुत बड़ी पहचान थी 
मीडिया और अखबारवालों की, आ गयी बाढ़ थी 
और इस सम्मान ने, कुछ पल को, मरहम रख दिया 
नम आँखें थी मगर था, सीना गर्व से तना हुआ 
उसे लगा देश के लिए की, कुर्बानी व्यर्थ न जायेगी 
देश की मिट्टी उस के लाल को, कभी भुला न पाएगी 
गम के अँधेरों में यूँ ही,, एक महीना गुज़र गया 
कागज़ी कार्यवाहियों, का काम सर पे आ गया 
ज्यादा पढ़ा-लिखा न था, अधिकारियों से क्या करता बात?
ऑफिसों के रोज़ वो, चक्कर लगाता रहा 
हर कोई कागज़ों में, कमी बताता रहा ,
उनमे से एक बेशर्म था, उसने रिश्वत माँग ली 
दिन का सुकून रातों की नींद सब बेटा ले गया 
देश और समाज जो थकता नहीं था कहते यही 
देशभक्ति  की कीमत सदा ही अमूल्य रही 
इसी पशोपेश में, कंगालियों के वेश में 
खींचता रहा वो दिन, बूढ़ा हुआ वो दिन-ब-दिन 
एक दिन मन में ठानकर वो ऑफिस गया जानकर
अधिकारी से बोला वो शायद नहीं तुम जानते  
शहीद था बेटा मेरा ,देशभक्त था बेटा मेरा 
उसने पलट के जो कहा "तो क्या हुआ "तो क्या हुआ 
यहाँ बहुत शहीदों की है फाइलें अटकी हुईं 
उसका जो कहना 'क्या हुआ' सीधा दिल में उतर गया 
सीना चीयर कर गया वो जार जार कर रोया 
अब कहाँ जाऊं मैं किस तरह निभाऊं मैं 
बेटा मेरा चला गया अब कैसे ज़िन्दगी चलाऊँ मैं 
थके-थके से थे कदम बुझा बुझा सा उसका मन 
एक और वाक़या घर में इंतज़ार उसका कर रहा 
जैसे घर में रखा कदम, पोता भाग आया एकदम 
दादू ! मुझे फौज में जाना है,पिता ने देश के लिए दी जान 
मुझे भी पिता की तरह, फ़र्ज़ अपना निभाना है 
सन्न हो गया बूढ़ा बाप, दहलीज़ पर बैठा उदास 
शून्य में निहारता रहा, हवाओं मे शब्द गूंजते रहे
 "तो क्या हुआ " "तो क्या हुआ" 
कहाँ गया वो मीडिया कहाँ गए अखबार वो 
बड़े बड़े वादे थी कर रही सरकार जो 
अकेला था भटक रहा कोई नहीं है साथ अब 
खोखले वादों पे टिकी ये देश की सरकार जब  
ऑफिसों में अटकी हुई फाइलें हज़ार हैं 
शहीदों के परिवारों की हालत खराब हैं 
ये सत्यकथा मैंने कही क्या आप भी कहेंगे यही 
तो क्या हुआ ! तो क्या हुआ !
         ✍️ सीमा कौशिक 'मुक्त' ✍️

कहाँ पहुँचेगा

उठ पाए न तन  से ऊपर, वो मन तक क्या पहुँचेगा 
इक पगली बैठी सोच रही ये रिश्ता कहाँ पहुँचेगा  
उसको तन की भूख नहीं है इतना तो वो जान गयी 
क्या कोई मिल पायेगा जो उसके मन तक पहुँचेगा 

करनी और कथनी में अंतर, दिखता तो था पहले भी 
अंतर इतना साफ़ हुआ, वो दिल तक क्या पहुँचेगा 
         इक पगली बैठी सोच रही ये रिश्ता कहाँ पहुँचेगा  

कोई अपेक्षा इसको तो पहले भी नहीं थी उससे पर 
उसकी अपेक्षा बढ़ती जाए, ये इसने कब सोचा था 
        इक पगली बैठी सोच रही ये रिश्ता कहाँ पहुँचेगा  
 
जो खुद इतना उलझा है उससे मन कोई क्या सुलझेगा 
जो लेना ही लेना जाने वो देना कहाँ कब सीखेगा 
        इक पगली बैठी सोच रही ये रिश्ता कहाँ पहुँचेगा 
                                           ✍️ सीमा कौशिक 'मुक्त' ✍️ 

साफ़ हो जाता है

भरपूर प्यार जब हो दिल में 
वो साफ़ नज़र आ जाता है  
छंटे भ्रम का अँधेरा जो मन से 
सब साफ़ नज़र आ जाता है 

दावे हों चाँद को लाने के और 
छोटी सी ख़ुशी वो देते नहीं 
कुछ सवाल आपको घेरें तो 
सब साफ़ नज़र आ जाता है ----

मज़बूरियाँ आपको घेरें हों 
वादों यादों के घेरे हों  
जब आवाज़ पीछे से आती हैं  
तब कदम कहाँ उठ पाता है ---- 

जब अपने स्वार्थ में डूबें हों 
एकदूजे के लिए अजूबे हों 
जब रोज़ अहम् टकराता है 
बिखराव साफ़ हो जाता है ----

आँधी-तूफानों के सायों में 
दुखों के गलियारों में 
मायूसी के अँधियारों में 
अपना-गैर साफ़ हो जाता है ----

जब सारे सहारे छिन जाएँ 
कोई तुमको न अपनाये 
तब खुद की पनाह में जाने से 
हर रास्ता साफ़ हो जाता है ----
        ✍️ सीमा कौशिक 'मुक्त' ✍️

मीठी वाणी

अनुभव की अकड़ में, न तन प्राणी तू 
बोल मीठी मधुर, मृदु वाणी तू 
माना श्रम किया बहुत, सहा तूने बहुत 
पर इसकी दिखा न, मेहरबानी तू 
 बोल मीठी मधुर, मृदु वाणी तू -----

जीवन अनुभव से माना, मन कड़वा हुआ 
कंठ तक रख ज़हर, बोल मीठी वाणी तू 
आज के वक़्त में दर्द पसरा हुआ 
हर उपाय यहाँ बेअसरा हुआ 
अपनों से बात कर, यूँ न अनजानी तू 
बोल मीठी मधुर, मृदु वाणी तू---- 

तन है तेरा शिथिल, दे सकेगा भी क्या 
कम से कम न दे दूजी, आँखों में पानी तू 
जो जितना तेरा करे, शूल सा वो गड़े 
इतनी भी क्या अकड़, न कर बेईमानी तू 
बोल मीठी मधुर, मृदु वाणी तू -----
       ✍️ सीमा कौशिक 'मुक्त' ✍️ 

दूरी

जब हम तुम दूर होते हैं 
बड़े मज़बूर होते हैं 
उलझे-उलझे हुए जज़्बात 
वो गुजरे हुए लम्हात 
वो नैनों में होती बात 
अनकहे वादों की बरसात 
          बहुत याद आते हैं 
मध्य हम दोनों के अचानक  
गायब दुनिया का हो जाना 
महक चारों तरफ तेरी
तेरी सराहना,मेरा लजाना 
          बहुत ही याद आते हैं 
जब हम तुम दूर होते हैं 
बड़े मज़बूर होते हैं 
जब रातें काटे नहीं कटती 
हर पल तन्हाईयाँ डँसती 
सहारे के बिना जीवन की 
डगमग नाव है हिलती 
         सनम याद आते हैं 
जब हम तुम दूर होते हैं 
बड़े मज़बूर होते हैं 
           ✍️ सीमा कौशिक 'मुक्त' ✍️ 

प्यार

जीवन में प्यार जब आता है 
सब कुछ सुन्दर हो जाता है 
कहीं दूर शहनाई बजती है  
ये मनमयूर हो जाता है 
         जीवन में प्यार...
हम बहके बहके रहते हैं 
थोड़ा महके महके रहते हैं 
जैसे ही सदा तुम देते हो 
दिल बाग़-बाग़ हो जाता हैं 
              जीवन में प्यार ...
जब देखे गहरी नज़रों से 
ये रंग गुलनार हो जाता है 
दुनिया भूल हम जाते है 
मन पंछी-सा हो जाता है 
             जीवन में प्यार ... 
               ✍️ सीमा कौशिक 'मुक्त' ✍️ 

अनकहा

रिश्तों में न ज़रूरी है न अच्छा, सबकुछ कहना  
कुछ अनकहा हमारे बीच, अनकहा रहने दो 
कहके न खोना वो पल, जो हमने महसूस किये
उन पलों को दिल में सहेज, प्यार से रहने दो  
कुछ अनकहा हमारे बीच अनकहा रहने दो ।। 
 
मुद्दतों बाद हँसे हैं हम ,तो हँस भी लेने दो 
नज़र लगे न किसी की, यूँही हमें रहने दो 
इस दुनिया को सब कुछ क्यों बताएँ हम 
तुम छोड़ दो ज़िद्द दुनिया की अनकहा रहने दो 
कुछ अनकहा हमारे बीच अनकहा रहने दो ।। 

दुनिया जाने न जाने, रब तो सब जानता है 
रब के वास्ते हमें अब चुप ही रहने दो  
तेरे मन का दर्पण शक्ल मेरी पहचानता है 
इस दर्पण पे कभी धूल मत आने देना 
कुछ अनकहा हमारे बीच अनकहा रहने दो।। 
               ✍️सीमा कौशिक 'मुक्त' ✍️ 

भीगी रात

 "बरसात की भीगी रातों में ",राधिका चोपड़ा जी को ये ग़ज़ल गाते सुना तो 
कुछ अलग भाव उमड़ पड़े और ये गीत प्रस्फुटित हुआ ---

बरसात की भीगी रातों में 
गीली लकड़ी-सा सुलगा मन 
इस करवट भी बेचैनी और  
उस करवट भी थी तड़पन
    बरसात की भीगी-----

बरसात छमाछम जब बरसी   
उसने इस दिल पर दी थपकी 
बदरा टप-टप नैना टप-टप 
ये रूह हमारी फिर तरसी 
    बरसात की भीगी-----

तुम किसी बहाने आ जाते
न ख़्वाबों में भी थी अड़चन 
मन दर्द विरह का न भूला 
चाहें नैन खुले थे या थे बंद 
बरसात की भीगी-----

खोजा दिल तो तुम हाज़िर थे 
फिर क्यों उमड़ी थी तड़पन 
साँसें मेरी तुम चला रहे थे  
और जारी भी थी धड़कन 
बरसात की भीगी रातों में ----

               ✍️ सीमा कौशिक 'मुक्त' ✍️ 

हाल

जिस हाल में रब रखे
उस हाल में रह लो तुम 
कुछ दिल की सुन लो 
कुछ दिल की कह लो तुम
        जिस हाल में रब रखे...
 
क्यों दर्द से डरते हो-3
इस दर्द को सहलो तुम 
सामनेवाले की-2 
मुस्कान चली जाए-2 
भूल के भी ऐसा 
कोई बोल न बोलो तुम
        जिस हाल में रब रखे...

सबके जीवन में, 
ऐसा क्षण आता है -3
रस्सी साँप बनती, -3
और दिल घबराता है -2
खुद पे भरोसा रख, 
आगे कदम बढ़ाओ तुम-2
         जिस हाल में रब रखे... 
         ✍️सीमा कौशिक 'मुक्त' ✍️