उठ पाए न तन से ऊपर, वो मन तक क्या पहुँचेगा इक पगली बैठी सोच रही ये रिश्ता कहाँ पहुँचेगा उसको तन की भूख नहीं है इतना तो वो जान गयी क्या कोई मिल पायेगा जो उसके मन तक पहुँचेगा करनी और कथनी में अंतर, दिखता तो था पहले भी अंतर इतना साफ़ हुआ, वो दिल तक क्या पहुँचेगा इक पगली बैठी सोच रही ये रिश्ता कहाँ पहुँचेगा कोई अपेक्षा इसको तो पहले भी नहीं थी उससे पर उसकी अपेक्षा बढ़ती जाए, ये इसने कब सोचा था इक पगली बैठी सोच रही ये रिश्ता कहाँ पहुँचेगा जो खुद इतना उलझा है उससे मन कोई क्या सुलझेगा जो लेना ही लेना जाने वो देना कहाँ कब सीखेगा इक पगली बैठी सोच रही ये रिश्ता कहाँ पहुँचेगा ✍️ सीमा कौशिक 'मुक्त' ✍️
Category: Song
साफ़ हो जाता है
भरपूर प्यार जब हो दिल में वो साफ़ नज़र आ जाता है छंटे भ्रम का अँधेरा जो मन से सब साफ़ नज़र आ जाता है दावे हों चाँद को लाने के और छोटी सी ख़ुशी वो देते नहीं कुछ सवाल आपको घेरें तो सब साफ़ नज़र आ जाता है ---- मज़बूरियाँ आपको घेरें हों वादों यादों के घेरे हों जब आवाज़ पीछे से आती हैं तब कदम कहाँ उठ पाता है ---- जब अपने स्वार्थ में डूबें हों एकदूजे के लिए अजूबे हों जब रोज़ अहम् टकराता है बिखराव साफ़ हो जाता है ---- आँधी-तूफानों के सायों में दुखों के गलियारों में मायूसी के अँधियारों में अपना-गैर साफ़ हो जाता है ---- जब सारे सहारे छिन जाएँ कोई तुमको न अपनाये तब खुद की पनाह में जाने से हर रास्ता साफ़ हो जाता है ---- ✍️ सीमा कौशिक 'मुक्त' ✍️
मीठी वाणी
अनुभव की अकड़ में, न तन प्राणी तू बोल मीठी मधुर, मृदु वाणी तू माना श्रम किया बहुत, सहा तूने बहुत पर इसकी दिखा न, मेहरबानी तू बोल मीठी मधुर, मृदु वाणी तू ----- जीवन अनुभव से माना, मन कड़वा हुआ कंठ तक रख ज़हर, बोल मीठी वाणी तू आज के वक़्त में दर्द पसरा हुआ हर उपाय यहाँ बेअसरा हुआ अपनों से बात कर, यूँ न अनजानी तू बोल मीठी मधुर, मृदु वाणी तू---- तन है तेरा शिथिल, दे सकेगा भी क्या कम से कम न दे दूजी, आँखों में पानी तू जो जितना तेरा करे, शूल सा वो गड़े इतनी भी क्या अकड़, न कर बेईमानी तू बोल मीठी मधुर, मृदु वाणी तू ----- ✍️ सीमा कौशिक 'मुक्त' ✍️
दूरी
जब हम तुम दूर होते हैं बड़े मज़बूर होते हैं उलझे-उलझे हुए जज़्बात वो गुजरे हुए लम्हात वो नैनों में होती बात अनकहे वादों की बरसात बहुत याद आते हैं मध्य हम दोनों के अचानक गायब दुनिया का हो जाना महक चारों तरफ तेरी तेरी सराहना,मेरा लजाना बहुत ही याद आते हैं जब हम तुम दूर होते हैं बड़े मज़बूर होते हैं जब रातें काटे नहीं कटती हर पल तन्हाईयाँ डँसती सहारे के बिना जीवन की डगमग नाव है हिलती सनम याद आते हैं जब हम तुम दूर होते हैं बड़े मज़बूर होते हैं ✍️ सीमा कौशिक 'मुक्त' ✍️
प्यार
जीवन में प्यार जब आता है सब कुछ सुन्दर हो जाता है कहीं दूर शहनाई बजती है ये मनमयूर हो जाता है जीवन में प्यार... हम बहके बहके रहते हैं थोड़ा महके महके रहते हैं जैसे ही सदा तुम देते हो दिल बाग़-बाग़ हो जाता हैं जीवन में प्यार ... जब देखे गहरी नज़रों से ये रंग गुलनार हो जाता है दुनिया भूल हम जाते है मन पंछी-सा हो जाता है जीवन में प्यार ... ✍️ सीमा कौशिक 'मुक्त' ✍️
अनकहा
रिश्तों में न ज़रूरी है न अच्छा, सबकुछ कहना कुछ अनकहा हमारे बीच, अनकहा रहने दो कहके न खोना वो पल, जो हमने महसूस किये उन पलों को दिल में सहेज, प्यार से रहने दो कुछ अनकहा हमारे बीच अनकहा रहने दो ।। मुद्दतों बाद हँसे हैं हम ,तो हँस भी लेने दो नज़र लगे न किसी की, यूँही हमें रहने दो इस दुनिया को सब कुछ क्यों बताएँ हम तुम छोड़ दो ज़िद्द दुनिया की अनकहा रहने दो कुछ अनकहा हमारे बीच अनकहा रहने दो ।। दुनिया जाने न जाने, रब तो सब जानता है रब के वास्ते हमें अब चुप ही रहने दो तेरे मन का दर्पण शक्ल मेरी पहचानता है इस दर्पण पे कभी धूल मत आने देना कुछ अनकहा हमारे बीच अनकहा रहने दो।। ✍️सीमा कौशिक 'मुक्त' ✍️
भीगी रात
"बरसात की भीगी रातों में ",राधिका चोपड़ा जी को ये ग़ज़ल गाते सुना तो कुछ अलग भाव उमड़ पड़े और ये गीत प्रस्फुटित हुआ --- बरसात की भीगी रातों में गीली लकड़ी-सा सुलगा मन इस करवट भी बेचैनी और उस करवट भी थी तड़पन बरसात की भीगी----- बरसात छमाछम जब बरसी उसने इस दिल पर दी थपकी बदरा टप-टप नैना टप-टप ये रूह हमारी फिर तरसी बरसात की भीगी----- तुम किसी बहाने आ जाते न ख़्वाबों में भी थी अड़चन मन दर्द विरह का न भूला चाहें नैन खुले थे या थे बंद बरसात की भीगी----- खोजा दिल तो तुम हाज़िर थे फिर क्यों उमड़ी थी तड़पन साँसें मेरी तुम चला रहे थे और जारी भी थी धड़कन बरसात की भीगी रातों में ---- ✍️ सीमा कौशिक 'मुक्त' ✍️
हाल
जिस हाल में रब रखे उस हाल में रह लो तुम कुछ दिल की सुन लो कुछ दिल की कह लो तुम जिस हाल में रब रखे... क्यों दर्द से डरते हो-3 इस दर्द को सहलो तुम सामनेवाले की-2 मुस्कान चली जाए-2 भूल के भी ऐसा कोई बोल न बोलो तुम जिस हाल में रब रखे... सबके जीवन में, ऐसा क्षण आता है -3 रस्सी साँप बनती, -3 और दिल घबराता है -2 खुद पे भरोसा रख, आगे कदम बढ़ाओ तुम-2 जिस हाल में रब रखे... ✍️सीमा कौशिक 'मुक्त' ✍️
भूलना(हास्य व्यंग)
सुन मेरे प्यारे पति, बिगड़ेगी तेरी गति तेरी भूलने की लत, हमें न स्वीकार है बाहर घुमाना भूले, पैसे देने भूलते हो जन्मदिन भूलने की, आदत बेकार है हमने कब से कहा, सिनेमा दिखा दो पर भूलने का ढोंग कर, बने होशियार हैं पैसे, भेंट, जन्मदिन, सिनेमा तो सह लिया भूलने की लत भुला, देने को तैयार हैं सुंदर नारी देखी तो, डाल देते हथियार अपनी पत्नी तक भूल, जाने को तैयार हैं बजाए हैं खूब गाल, गलेगी न तेरी दाल बैंड तेरा बजाने को, हम भी तैयार हैं ✍️ सीमा कौशिक 'मुक्त' ✍️
प्यास
कईं बार ऐसा हुआ साथ सबके जो चाहा हमने मिला भी लेकिन हमारे दिल की प्यास बुझी नहीं है सोचें क्यों प्यास झूठी हो रही है... कभी ये लगता है इससे बुझेगी कभी ये लगता कुछ और ही पा लें रही दिल की तिश्नगी ऐसी साहब व्याकुलता बस दिनोदिन बढ़ रही है ... क्यों समझते नहीं सभी भ्रम ये, इंद्रजाल में उलझे उलझे हम हैं सही नहीं रहा माया में उलझना झूठे जग में प्यास झूठी हुई है ... अपनी प्यास की सार्थकता जानो अपनी प्यास का उदगम पहचानो झूठी प्यास के पीछे यूँ न भागो सुन ये प्यास ही झूठी हो रही है.... ✍️सीमा कौशिक 'मुक्त' ✍️