सुन मेरे प्यारे पति, बिगड़ेगी तेरी गति तेरी भूलने की लत, हमें न स्वीकार है बाहर घुमाना भूले, पैसे देने भूलते हो जन्मदिन भूलने की, आदत बेकार है हमने कब से कहा, सिनेमा दिखा दो पर भूलने का ढोंग कर, बने होशियार हैं पैसे, भेंट, जन्मदिन, सिनेमा तो सह लिया भूलने की लत भुला, देने को तैयार हैं सुंदर नारी देखी तो, डाल देते हथियार अपनी पत्नी तक भूल, जाने को तैयार हैं बजाए हैं खूब गाल, गलेगी न तेरी दाल बैंड तेरा बजाने को, हम भी तैयार हैं ✍️ सीमा कौशिक 'मुक्त' ✍️
Category: Song
प्यास
कईं बार ऐसा हुआ साथ सबके जो चाहा हमने मिला भी लेकिन हमारे दिल की प्यास बुझी नहीं है सोचें क्यों प्यास झूठी हो रही है... कभी ये लगता है इससे बुझेगी कभी ये लगता कुछ और ही पा लें रही दिल की तिश्नगी ऐसी साहब व्याकुलता बस दिनोदिन बढ़ रही है ... क्यों समझते नहीं सभी भ्रम ये, इंद्रजाल में उलझे उलझे हम हैं सही नहीं रहा माया में उलझना झूठे जग में प्यास झूठी हुई है ... अपनी प्यास की सार्थकता जानो अपनी प्यास का उदगम पहचानो झूठी प्यास के पीछे यूँ न भागो सुन ये प्यास ही झूठी हो रही है.... ✍️सीमा कौशिक 'मुक्त' ✍️
रक्षाबंधन
रक्षाबंधन की आप सबको बहुत बहुत बधाई ! 🙏🏻🙏🏻🌹🌹 ह्रदय प्रेम से भरा तो ये कविता ज़ेहन में उभरी !🤗 ईश्वर सभी के भाइयों एवं बहनों पर सदैव अपनी कृपा बनाये रखें ! 🙏🏻🙏🏻🌹🌹 🌹🌹आओ मेरे प्यारे भाई, सजा दूँ मैं सुदृढ़ कलाई माथे पर तेरे तिलक सजा दूँ अक्षत रोली चन्दन लगा दूँ तुम हो मेरी माँ के जाये तुम पर न कभी विपदा आये🌹🌹 🌹🌹आ ले लूँ मैं तेरी बलैयाँ तुमपर सदा रहे सुख छइयां प्रभु कृपा का पहरा लगा दूँ अपनी दुआओं का कवच पहना दूँ रहा खड़ा संग मेरे तू भाई मैंने जब आवाज़ लगाई 🌹🌹 आओ मेरे प्यारे भाई, सजा दूँ मैं सुदृढ़ कलाई ✍️सीमा कौशिक 'मुक्त' ✍️
पहरा
रह रह के दिल दर्द से भरता क्यों है सब कुछ है पर दिल में उदासी क्यों है सबकी कमियों पे रुक जाती है नज़र या रब जहाँ में प्यार की कमी क्यों है दर्द देना सहना इन्सां की आदत ठहरी फिर दर्द से इतना दिल दुखता क्यों है बदनामी का तोहफा इक दूजे को यहाँ हर चेहरे पे चेहरा क्यों है बिखरी है जमाने में ख़ुशियाँ हरसूँ फिर दिल पे मायूसियों का पहरा क्यों है ✍️ सीमा कौशिक 'मुक्त' ✍️
मासूम
मासूम हम हैं वो बन रहे हैं तीरे-नज़र फिर क्यों तन रहे हैं ... हमें समझ न सके तुम अब तक क्यों बेवजह अपने बन रहे है... हमें न हिम्मत गिनाएँ गलती हमारी गलती वो गिन रहे हैं ... प्यार के दो लफ्ज़ सुन न पाए ज़माने भर की हम सुन रहे हैं ... जले ख्वाब आँखों के सामने पर ख्वाब हम अब भी बुन रहे हैं ... हमें किसी से नहीं शिकायत दुनिया नहीं रब को चुन रहे हैं ... ✍️सीमा कौशिक 'मुक्त' ✍️
अनमोल
ज़िन्दगी अनमोल है, सदा ज़िन्दगी को चुनो । गम की अँधेरी रात में, बढ़ते रहना ही चुनो ।। आँधियाँ तूफ़ान रस्ता रोकलें कितना मगर । हार न मानो हमेशा , उनसे लड़ना ही चुनो ।। दिल की हर आवाज़ को, क्यों अनसुना करते रहे । मोल जानोगे अगर, फिर ना करोगे अनसुना।। सोच की दलदल में फँसना, है सिरे से ही वृथा। दुनिया बदलने की जगह, ख़ुद को बदलना ही चुनो ।। क्या सज़ा दोगे किसी को, क्यों हो तुम सबसे नाराज़। आज अब अनमोल है, बस आज और अब चुनो।। ✍️ सीमा कौशिक 'मुक्त' ✍️
मयस्सर
वो लम्हें नहीं मयस्सर,जिन्हें सीने से लगा लूँ आ पास आ ज़िन्दगी, आ गले तुझे लगा लूँ कब रात आयी कब दिन, कब हुई सुबह-ओ-शाम कैसे गुज़रा वक़्त है ये, इसे कैसे मैं बचा लूँ इस दिल ने चाहा जो भी, वो मिला नहीं कभी भी दिल रोये और चीखे, इसे कैसे मैं मना लूँ मेरे दर्द की दवा भी, किसी सूरत हो न पायी ये वक़्त बने मरहम, थोड़ा मैं भी मुस्कुरा लूँ आसान है दर्द में, सुन 'मुक्त' यूँ कराहना हिम्मत से मुस्कुरा कर, दोनों जहाँ बना लूँ ✍️सीमा कौशिक 'मुक्त' ✍️
देशभक्त
देशभक्तों की आँखों में, अंगार शोभा नहीं देता होंठों पर नफरत का ज़हर, शोभा नहीं देता आप धार्मिक हैं तो, धर्म भी समझा करिये धर्म के नाम पर, दंगा शोभा नहीं देता कौन हैं वो लोग जो, नफरत की करें पैरवी ऐसे लोगों का साथ, हमें शोभा नहीं देता इंसानियत का धर्म, सब धर्मों से है ऊपर इसकी अवमानना का रवैया, शोभा नहीं देता दूसरों के दिल पर, दर्द की दस्तक मत दो वर्ना ख़ुद दर्द में कराहना, भी शोभा नहीं देता सदियों से गुरुओं पैगम्बरों ने, दिया जो सन्देश उसे बहकावे में भुलाना, हमें शोभा नहीं देता
ध्यान
चाहे जितनी भी दूरी थी चाहे कितनी मज़बूरी थी पास रहे फिर भी दूरी थी तेरे होने का अहसास रहा मुझे अक्सर तेरा ध्यान रहा कब कैसे बच्चे बड़े हुए अपने शत्रु बन खड़े हुए कब सेहत ने दिया धोखा दिल ने बार बार रोका मुझे अक्सर तेरा ध्यान रहा इक छोटा सा घर बनाना था प्यार से उसे महकाना था कभी पूर्ण स्वप्न कर पाओगे दिल खोल मुझे अपनाओगे मुझे अक्सर तेरा ध्यान रहा टूटे बिखरे सपने मेरे आधी अधूरी ख्वाहिश हैं माँ बाप जहाँ को छोड़ गए बच्चों का अपना जीवन है मुझे अक्सर तेरा ध्यान रहा हालात रहे चाहे जैसे कभी ऐसे या कभी वैसे बस तेरा ही आह्वान रहा मुझे अक्सर तेरा ध्यान रहा ✍️सीमा कौशिक 'मुक्त' ✍️
अधिकार
कहीं भी मैं चली जाऊँ कहूँ क्या याद आने में जलाने के नए किस्से बहाने भी बनाने में कसम खाने खिलाने के बहाने दिल लुभाना क्यों ज़माना भी बुरा लगता हमें हँसने हँसाने में समझ पाओ अजी समझो, नहीं अधिकार तुम्हारा मगर क्यों वारते हो दिल हमारे मुस्कुराने में लुभाने को बहुत हैं तितलियाँ सारे जहाँ मालिक मज़ा क्या है उँचाई से किसी को भी गिराने में इसे मेरी ज़ुबानी प्यार का इज़हार मत समझो बड़ा आता मुझे गुस्सा तुझे अपना बताने में ✍️सीमा कौशिक 'मुक्त' ✍️