बदली जमाने की हवा, फ़िज़ाएँ बदल गयीं अपने गए बदल, उनकी निगाहें, बदल गयीं खामोशियाँ हर तरफ, ज़ोर तन्हाईयों का है दिल नहीं बदला ! दिल की सदायें, बदल गयीं सब आजकल कहते, अजी उम्र है सिर्फ नंबर एल्बम उठा के देखा, तो मिला, नस्लें बदल गयीं हमने कहा कब की हमें, पसंद करिये हुज़ूर जब लगने लगा, अच्छा, तुम्हारी पसंद बदल गयी दुनिया को बहुत समझाया, करते थे यार हम जब समझ आया हमें, तो दुनिया बदल गयी वो कहता था सीखो, अभी कुछ न आता तुम्हें हम सीख गए हैं, तो पूछे है, तुम क्यों बदल गयीं हमने अपने बारे में नहीं सोचा था कभी यार ज़रा सा सोचा तो, कहे है, तुम तो बदल गयीं
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पंछी और इंसान
माना आसान नहीं,पर बच्चों को खिलने का पूरा मौका दीजिये। अपनी पसंद से शादी, अपनी पसंद से कैरियर, अपने मनमुताबिक चलाना, इज़्ज़त के नाम पर ! अपने स्वार्थ में उनके सपनों की आहुति मत दीजिये... पंख निकलते ही बच्चों के सदा पंछी देते उड़ा मांगें नहीं वापस वो उनसे जो भी उनके लिए किया उनका जीवन उनको सौंप वो रहते हो निश्चिंत जब-तब बच्चे लौटें आएँ फिर से उनके ही पास हों बूढ़े तो वो दाना भी ख़िलाएँ बिठा कर अपने पास हम इंसान क्यों बच्चों को न देते उनका आसमां पंख कतरने के सदैव ही क्यों रखते अरमान निरपेक्ष भाव परवरिश से रंग नए खिल जाते उम्र बढ़ने पर बच्चे भी माँ-बाप का साथ निभाते क्यों भूलते प्रकृति नियम न साथ सदा रह पाते न साथ सदा रह पाते
रूह का परिंदा
दिल की बेचैनियों की लाख हैं वजहें कैसे कोई यहाँ अपना सुकून पाए हमारी रूह का परिंदा फड़फड़ाये करें लाख जतन पर न चैन पायें बंद कमरे में होती है घुटन जैसे अंदर ही अंदर ये तो कसमसाये असर दिखलाता है हमे कुछ ऐसा रोज़ नया करना, नया ही पाना चाहे करें लाख जतन पर न चैन पायें ध्यान योग सदा ही सहारा बनता मग़र मन की बेचैनी मिट न पाए ख्वाहिशों और ख़्वाबों में घिरा,नादाँ ज़िन्दगी की ज़द्दोज़हद तड़पाये करें लाख जतन पर न चैन पायें
बेटी का हॉस्टल जाना
किसी अति भावुक इंसान ने जब ये कहा की बेटी का हॉस्टल जाना उसकी पहली घर से विदाई है ,तो मैं रह नहीं पायी ये लिखे बिना........ "बेटी का हॉस्टल जाना" विदाई दिल से की है तो वो विदाई है नहीं तो लाड़ली तेरी कहाँ परायी है दिल के और करीब ही हो गयी है वो जब से दूजे शहर में पढ़ने आयी है तेरा प्यार, बिटिया की कमज़ोरी न बने तू बने ताकत इसमें, दोनों की भलाई है ससुराल में भी एक नया घर बसाती हैं तेरे ही नाम को रोशन वो करती जाती हैं गौर से देखेगा तो तुझे मालूम होगा यही तेरे ही अंश ने ये दुनिया नयी बसाई है एक दिन गर्व होगा तुझे उस पर तेरी मेहनत क्या सुंदर रंग लायी है सदा छोटी गुड़िया तो नहीं रह सकती वो हमेशा तेरे पास तो नहीं रह सकती वो तुमने भी तो अपना घर कभी बसाया था माँ बाप को तू भी तो कभी छोड़ कर आया था उसे भी छूने दे उसका आसमान,सुन भाई मत कह उसे ये है उसकी पहली विदाई
मुमकिन
है मुमकिन हर दर्द रंजो गम का बोझ उठा ले कोई नहीं मुमकिन गिरी हुई सोच को उठा लेना है मुमकिन किसी रिश्ते में प्यार के बगैर रहे कोई नहीं मुमकिन विश्वास के बगैर रहना मगर रहते हैं कुछ लोग प्यार विश्वास के बिना भी इसी को कहते हैं रब की मर्ज़ी को निभा लेना फ़क़ीर लगते नहीं ये लोग, होते हैं उन जैसे ही दीवाने झट रब की मर्ज़ी में, अपनी मर्ज़ी मिला लेना मुमकिन है मिटा दो यादों का, कारवां तुम ज़ेहन से यारा नहीं मुमकिन हमें, अपने दिल से मिटा देना ️✍️सीमा कौशिक 'मुक्त' ✍️
अनमोल
ये कविता उन सभी बच्चों को समर्पित जो हमसफ़र के लिए सुंदरता को अहम् स्थान देते हैं और बाद में ख़ुद को विषम परिस्थिति में घिरा पाते हैं ........... चेहरे बदन की ख़ूबसूरती, सराही जाती है यदि सीरत की भी ख़ूबसूरती, अब सराही जानी चाहिए कोई पैसे पर ही रखे निग़ाह, ये गलत है हुज़ूर सच्चे प्यार की कीमत ही, अनमोल होनी चाहिए चले गए ज़माने, कागज़ी ख़ूबसूरती के जहान से पुरज़ोर मेहनत की भी तो, कद्र्दानी होनी चाहिए ख़्वाबों से ही नहीं चलती, ये दुनियाँ सुन यार मेरे ख़्वाबों के लिए ज़मीनी, हक़ीक़त नहीं खोनी चाहिए क्षणिक सुख आत्मिक सुख, के आगे गौण है सर्वदा आत्मिक सुख का दाम, सदा अनमोल होना चाहिए ️✍️सीमा कौशिक 'मुक्त' ✍️
खण्डहर
"खण्डहर" इमारत बुलंद थी खण्डहर बता रहे हैं मगर अब कहाँ हैं वो इमारतें बन गयीं खण्डहर खण्डहर यादों के खण्डहर ज़ज़्बातों के हर तरफ नीरव ख़ामोशी अहसास धुंधले अतीत का नश्वरता क्षणभंगुरता का मगर चेता रही हैं हमें है एक एक क्षण कीमती हर पल जियो भरपूर जीवन खण्डहर होने से पहले मस्त नदी सा प्रवाह बिना दिल से लगाए छोटी बड़ी बातें (स्वरचित कविता) ️✍️सीमा कौशिक 'मुक्त' ✍️
सुरमयी शाम
सुरमयी शाम इंतज़ार में हर लम्हा तेरे प्यार का अहसास हर लम्हा सात सुरों की महफ़िल सजाई है इंतज़ार में धड़का दिल हर लम्हा सुरमयी शाम इंतज़ार में हर लम्हा कोई कहता रहे हमें अब कुछ भी दिल करे है तुम से बात हर लम्हा हम हाथों में हाथ लिए बैठे हों सुलगें मीठे जज़्बात हर लम्हा सुरमयी शाम इंतज़ार में हर लम्हा हसीं पलकों पर शाम सजाई है आजा अब जान पे बन आयी है सराबोर हो जाएँ प्यार के रंगों से दिल से दिल की बात हर लम्हा सुरमयी शाम इंतज़ार में हर लम्हा ️
इश्क़
ए इश्क़ हमें भी देख ज़रा हम पलकें बिछाये बैठे हैं हँस कर देख ले एक नज़र हम जान लुटाये बैठे हैं ए इश्क़ हमें भी देख ज़रा हम पलकें बिछाये बैठे हैं सूना सूना मन का अँगना सूनी सूनी दिल की गलियाँ सूनी आँखें तकती राह तेरी हम ख्वाब सजाये बैठे हैं ए इश्क़ हमें भी देख ज़रा हम पलकें बिछाये बैठे हैं क्या है जीना इश्क़ बिना क्या है मरना इश्क़ बिना है इश्क़ इबादत अब मेरी हम हाथ उठाये बैठे हैं ए इश्क़ हमें भी देख ज़रा हम पलकें बिछाये बैठे हैं यूँ इतराना तेरा कैसा यूँ इठलाना तेरा कैसा जीना नहीं यारा तेरे बिना हम आस लगाए बैठे हैं ए इश्क़ हमें भी देख ज़रा हम पलकें बिछाये बैठे हैं तेरा गम का है रिश्ता सही तेरे साथ है गम मंज़ूर हमें तुझ से कैसी पर्दादारी हम साथ निभाए बैठे हैं ए इश्क़ हमें भी देख ज़रा हम पलकें बिछाये बैठे हैं ️✍️सीमा कौशिक 'मुक्त' ✍️
आहिस्ता
मेरे दिल का गुलाब खिल रहा, आहिस्ता आहिस्ता
तेरा प्यार कर रहा दिल पर असर, आहिस्ता आहिस्ता
तेरा इंतज़ार किया है बहुत यारा
हो रहा तू दिल के करीब, आहिस्ता आहिस्ता
दूर तक खिल रहे है फूल ही फूल
महक रहा है ये तन मन, आहिस्ता आहिस्ता
रात में चाँद को मैं तकती रही देर तलक
चाँद शरमाया आँखों से, आहिस्ता आहिस्ता
तारों की भी हिम्मत देखो
पूछते हैं कौन है वो, आहिस्ता आहिस्ता
हम तो समझे थे हो गए पत्थर हम
कैसे हुए मोम हम, आहिस्ता आहिस्ता
इतना मीठा है क्या प्यार का अहसास
रूह भी महके हरदम, आहिस्ता आहिस्ता
सिर्फ नज़र आये वो, कोई और नहीं
हम तो रहने लगे मदहोश, आहिस्ता आहिस्ता