हालातों का गुलाम 'दिल'...राहतों का तलबगार रहा उलझी रही ज़िन्दगी ..........उलझा सा किरदार रहा कौन चाहता है अपने.... दर्देदिल की नुमाइश करना बर्दाश्त से बढ़ने लगा दर्देदिल.....तभी चीत्कार रहा ज़िन्दगी के मंच पे बदहवास खड़े...हम सोचा किये कसूर हमारा ही था क्या......जो जीना सोगवार रहा स्कूलों में जीवन जीने का... हुनर भी सिखाया जाए इस हुनर के बिना हमारा जीना... हर तरह दुश्वार रहा सीधा-सच्चा होना इस दुनिया में गुनाह सबसे बड़ा या रब ! यही गुनाह हमसे क्यों .......बारम्बार हुआ हम छोड़ दें ..पुरानी बातों यादों किस्सों को.. मगर उनका ...हमें छोड़ने से.. हर बार क्यों.... इंकार रहा अच्छे लोगों आओ ..जियें भरपूर.. नयी दुनिया बसायें, हर बार हमारा ही.. हर एक से ........यही इसरार रहा ✍️ सीमा कौशिक 'मुक्त' ✍️
Category: Song
बैसाखी त्यौहार
*मुबारक बैसाखी त्यौहार, चल भंगड़ा डालो यार* *मेरे देश की पावन मिट्टी, देती है नित उपहार* *मेहनत का इनाम है देती, है भरे खूब भण्डार* *फसलें पकें खेत में तभी, चेहरों पर आती रौनक* *नृत्य संगीत लौटे जीवन में, हों खुशियाँ बेशुमार* *मुबारक बैसाखी त्यौहार, चल भंगड़ा डालो यार* *गूँजा लोकगीतों से देखो धरती और आसमान* *फसल कटे धन मिले तभी, सब पहने नवीन परिधान* *नित उत्सव होते फिर घरों में जमती शाम-ए-महफ़िल* *नाचे मनमयूर देख के विभिन्न मधुर सरस पकवान* *मुबारक बैसाखी त्यौहार, चल भंगड़ा डालो यार* ✍️सीमा कौशिक 'मुक्त' ✍️
इंतज़ार
मैं ज़िंदा हूँ बस इंतज़ार में हूँ तेरे तबस्सुम तेरी याद में हूँ देख ले इक बार मेरी तरफ तेरी वफ़ा के इंतज़ार में हूँ कौन कहे तुझमें वफ़ा नहीं कौन जाने तेरी पेचीदगियाँ अभी तक याद है ज़ुल्म यारा तेरे प्यार के इंतज़ार में हूँ हरबार इक नया दग़ा तेरा हरबार इक नया ज़ख्म तेरा फिर भी साथ हूँ सालों से क्या अपने क़त्ल के इंतज़ार में हूँ या तेरे रहमोकरम के इंतज़ार में हूँ मैं ज़िंदा हूँ बस तेरे इंतज़ार में हूँ
रात
ये रात महकती है, बात बहकती है नैन झुके हैं मेरे, लब खामोश जी कभी तो आ इस जीवन में बहार बन प्यार के सरूर में, हुए मदहोश जी रूठने मनाने का, सिर्फ बहाना था पास बुलाना था, झूठा है रोष जी तेज तेज साँसें हैं, दिल लगा झूमने कैसे बताऊँ अब, नहीं मुझे होश जी प्यार की कहानी,धड़कन की ज़ुबानी धीरे से सुनो मुझे, लो आगोश जी ये रात महकती है, बात बहकती है नैन झुके हैं मेरे, लब खामोश जी ✍️सीमा कौशिक 'मुक्त' ✍️
है तो है
हमें तुमसे प्यार है तो है हमें ख़ुद पे एतबार है तो है फर्क नहीं पड़ता तू चाहे न चाहे हमारी चाहत बरकरार है तो है कोई हमारे साथ हो न हो रब हमारे साथ है तो है हम कितना भी करे सबके लिए मगर सभीको हमसे शिकायत है तो है छोड़ो ये सुख-दुःख का रोना धोना सुबह के बाद शाम, दिन के बाद रात है तो है आज पा लिया हो चाहे जितना कल बहुत कुछ पाने का अरमान है तो है माफ़ी मांगी हों लाख तुमने गुनाहों की मगर दिल में हमारे कसक है तो है माना नहीं हक़ हमारा किसी की ज़िन्दगी पे मगर कुछ बातों पे ऐतराज़ है तो है लोगों को भाती होगी समझदारी लेकिन हमें मासूमियत लुभाती है तो है छोड़ो घुमा फिरा के बातें करना ज़नाब आपको हमसे प्यार है तो है आती हैं हमें कईं जुबानें लेकिन अपनी हिंदी से प्यार है तो है कोई भी जाति-धर्म हो मेरा मगर इंसानियत से प्यार है तो है घर पर तिरंगा नहीं फहराते हम पर दिल में तिरंगा है तो है देशभक्ति के दावों से लाख बचें मगर देशभक्ति रगों में है तो है कहीं भी हो जन-मन-गण हो साथियों मन राष्ट्रीय गान गुनगुनाता है तो है … ✍️ सीमा कौशिक 'मुक्त' ✍️
बदलाव
बदली जमाने की हवा, फ़िज़ाएँ बदल गयीं अपने गए बदल, निगाहें बदल गयीं हरतरफ खामोशियाँ, तन्हाईयों का ज़ोर दिल नहीं बदला ! सदायें बदल गयीं सब आजकल कहते, अजी उम्र है नंबर एल्बम उठा के देखा, तो नस्लें बदल गयीं हमने कब कहा हमें, करिये पसंद हुज़ूर भाने लगा हमें तो क्यों, पसंद बदल गयी दुनिया को बहुत, समझाया हमने यार समझ आया जब हमें, दुनिया बदल गयी वो कहता था सीखो अभी, कुछ आता न तुम्हें सीखे तो है सवाल कि तुम क्यों बदल गयीं ✍️ सीमा कौशिक 'मुक्त'
पंछी और इंसान
माना आसान नहीं,पर बच्चों को खिलने का पूरा मौका दीजिये। अपनी पसंद से शादी, अपनी पसंद से कैरियर, अपने मनमुताबिक चलाना, इज़्ज़त के नाम पर ! अपने स्वार्थ में उनके सपनों की आहुति मत दीजिये... पंख निकलते ही बच्चों के सदा पंछी देते उड़ा मांगें नहीं वापस वो उनसे जो भी उनके लिए किया उनका जीवन उनको सौंप वो रहते हो निश्चिंत जब-तब बच्चे लौटें आएँ फिर से उनके ही पास हों बूढ़े तो वो दाना भी ख़िलाएँ बिठा कर अपने पास हम इंसान क्यों बच्चों को न देते उनका आसमां पंख कतरने के सदैव ही क्यों रखते अरमान निरपेक्ष भाव परवरिश से रंग नए खिल जाते उम्र बढ़ने पर बच्चे भी माँ-बाप का साथ निभाते क्यों भूलते प्रकृति नियम न साथ सदा रह पाते न साथ सदा रह पाते
रूह का परिंदा
दिल की बेचैनियों की लाख हैं वजहें कैसे कोई यहाँ अपना सुकून पाए हमारी रूह का परिंदा फड़फड़ाये करें लाख जतन पर न चैन पायें बंद कमरे में होती है घुटन जैसे अंदर ही अंदर ये तो कसमसाये असर दिखलाता है हमे कुछ ऐसा रोज़ नया करना, नया ही पाना चाहे करें लाख जतन पर न चैन पायें ध्यान योग सदा ही सहारा बनता मग़र मन की बेचैनी मिट न पाए ख्वाहिशों और ख़्वाबों में घिरा,नादाँ ज़िन्दगी की ज़द्दोज़हद तड़पाये करें लाख जतन पर न चैन पायें
बेटी का हॉस्टल जाना
किसी अति भावुक इंसान ने जब ये कहा की बेटी का हॉस्टल जाना उसकी पहली घर से विदाई है ,तो मैं रह नहीं पायी ये लिखे बिना........ "बेटी का हॉस्टल जाना" विदाई दिल से की है तो वो विदाई है नहीं तो लाड़ली तेरी कहाँ परायी है दिल के और करीब ही हो गयी है वो जब से दूजे शहर में पढ़ने आयी है तेरा प्यार, बिटिया की कमज़ोरी न बने तू बने ताकत इसमें, दोनों की भलाई है ससुराल में भी एक नया घर बसाती हैं तेरे ही नाम को रोशन वो करती जाती हैं गौर से देखेगा तो तुझे मालूम होगा यही तेरे ही अंश ने ये दुनिया नयी बसाई है एक दिन गर्व होगा तुझे उस पर तेरी मेहनत क्या सुंदर रंग लायी है सदा छोटी गुड़िया तो नहीं रह सकती वो हमेशा तेरे पास तो नहीं रह सकती वो तुमने भी तो अपना घर कभी बसाया था माँ बाप को तू भी तो कभी छोड़ कर आया था उसे भी छूने दे उसका आसमान,सुन भाई मत कह उसे ये है उसकी पहली विदाई
मुमकिन
है मुमकिन हर दर्द रंजो गम का बोझ उठा ले कोई नहीं मुमकिन गिरी हुई सोच को उठा लेना है मुमकिन किसी रिश्ते में प्यार के बगैर रहे कोई नहीं मुमकिन विश्वास के बगैर रहना मगर रहते हैं कुछ लोग प्यार विश्वास के बिना भी इसी को कहते हैं रब की मर्ज़ी को निभा लेना फ़क़ीर लगते नहीं ये लोग, होते हैं उन जैसे ही दीवाने झट रब की मर्ज़ी में, अपनी मर्ज़ी मिला लेना मुमकिन है मिटा दो यादों का, कारवां तुम ज़ेहन से यारा नहीं मुमकिन हमें, अपने दिल से मिटा देना ️✍️सीमा कौशिक 'मुक्त' ✍️