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शिखी
उसकी आँखों में प्यार नज़र आता है उसकी चुप में भी राज़ नज़र आता है यूँ तो हमदम साथ रहा है बरसों से बदला-सा पर अंदाज़ नज़र आता है मेरे हाकिम की तरबीयत क्या ईमान बदमाशों का सरताज नज़र आता है फ़क़त शिखी-सा बनने की करता कोशिश पर समझो तो डरपोक नज़र आता है ✍️सीमा…
शोखी
२२२२ २२२२ २२२२ २दिल की बेचैनी उसकी शोखी में दिखती हैमुस्कानों में भी ठंडी ख़ामोशी दिखती हैजब जब दर्द बढे तो बेतरह खिलखिलाता हैआँखों की वीरानी में मदहोशी दिखती है मुकम्मल नहीं जग में, बिन ख्वाहिश ना है कोईसबके दिल की गाड़ी क्यों रुक-रुक कर चलती है भाव पीर में डूबे तो, विरहा के गीत…
वाज़िब
बचाओ रिश्तों को लेकिन, न ख़ुद से हारना वाज़िब मग़र हों ख़त्म ख़्वाहिश और समझौते? गैर-मुनासिब ! ✍️सीमा कौशिक ‘मुक्त’ ✍️
मुक़द्दस
अहसासे-कमतरी देता……….वो अपना हो नहीं सकता जो रिश्ता बनता न दिल से…….मुक़द्दस हो नहीं सकता बूझो कौन है हरवक्त………….. तेरे भीतर, नहीं तुझसा वो तेरा या किसी का क्या ! जो ख़ुद का हो नहीं सकता ✍️सीमा कौशिक ‘मुक्त’ ✍️
दोहा.302
हों हर तबके के प्रति, सब संवेदनशील मानवता सबसे बड़ी, करती यही अपील ✍️सीमा कौशिक ‘मुक्त’ ✍️