क्या हो जाता तुम जो होते भी वो तो तुम्हारे होते हुए भी तनहा थी कर पाते उसके ज़ज़्बातों का अहसास दे पाते उसके तन को आराम मन को चैन तुम जो होते भी तो क्या हो जाता……. तुम्हे तो चाहिए था हरवक्त हाज़िर एक शख्स जो आये और आकर हुक्म बजा लाये वो करे बिलकुल वैसा जैसा तुम चाहो वो बातें भी करे उतनी जितनी तुम चाहो वो भी तुम्हारी पसंद की! तुम जो होते भी तो क्या हो जाता …….. जिसे कर पाओ तुम ज़लील वक़्त बेवक़्त जिसे ठहरा सको तुम अपनी नाकामियों का ज़िम्मेदार जिसे याद ना आये अपनों की जिन्हे वो चाहे जिनसे रिश्ते निभाने की ज़रुरत नहीं उसे तो याद करना है तुम्हे और तुमसे जुड़े तमाम रिश्ते जिनसे निभाना ही है तुम जो होते भी तो क्या हो जाता……. क्या बीता वक़्त लौट आता क्या सब ठीक हो जाता क्या दिए घाव भर जाते क्या फासले मिट जाते अगर हाँ तो आ जाओ !वर्ना रहने ही दो ! और मुझे कहने दो तुम जो होते भी तो क्या हो जाता…….