मना किया हमने कोई आस न हमसे लगाए जाने क्यों बैठा रहा, राह में दीपक जलाए हमने करीब आने को किया था इंकार मगर आगया ख्वाबों में वो आस के दीये सजाए ✍️सीमा कौशिक 'मुक्त' ✍️
Tag: आस
आस
हर सुबह दे रही आस की आवाज़ सुन चहचहाते पंछी हैं मंद सी हवा है सुन कह रही है वादियाँ कह रही फ़िज़ाएँ हैं आस की इस डोर से, मंज़िल मिलेंगी सुन
आस
सत्य, अहिंसा, सादगी, यदि इन पर है विश्वास निज जीवन में अपनाओ, तुम खूब करो प्रयास आस्था इन पर रखते ,पर नहीं करते पालन जब ख़ुद ही बेईमानी करते, न रख किसी से आस
आस
मैं हर वक़्त तेरी यादों में गुम सी हूँ तू यहीं कहीं मेरे आसपास ही है तेरी आरज़ू तेरे अहसास में डूबी ऐसे वो जिसने ज़िंदा रखा ,तेरे मिलने की आस ही है