क्या करे कोई .... जो दिल तक आवाज़ ना पहुंचे जो प्यार रूह तलक ना पहुंचे जो अपना ही बोझ हो जाए मगर वो फिर भी इतराये क्या करे कोई .... जो मेहनत रंग ना लाये जो दे दे साया ही धोखा जब तुम्हारा प्यार ना अपनाये जो बिनगलती अपमान और सज़ा पाए क्या करे कोई ...... जो सच्चाई और भोलापन, तुम्हारे ऐब हो जाए जब घुटन हद से बढ़ जाए जब कोशिश से भी पुरानी, यादें ना मिटती हों जब ज़िम्मेदारी बाकी हो पर शरीर थक जाए क्या करे कोई ...... जो तेरा जीना हो बेमानी जो मरना हो खुद से बेईमानी जो रोज़ बिखर के जुड़ता हो जब चाहें आगे निकल जाना मगर वक़्त थम जाए क्या करे कोई ..........