87.दोहा

चाह अधूरी क्रोध दे, क्रोध दे मूढ़भाव 
मूढ़भाव दे स्मृति भ्रम, मिटता तभी प्रभाव
              ️✍️सीमा कौशिक 'मुक्त' ✍️