208.दोहा

*ख़ुद गिर कर ऊँचा उठा, हुई उच्चता व्यर्थ*। 
*अपनी नज़रों में गिरा, क्या जीवन का अर्थ*।।
          ✍️ सीमा कौशिक 'मुक्त' ✍️