दौर

बदला ज़माना बदले, प्यार के नियम 
   और हम रह गए वही पुराने हम 
   तू नहीं और सही और नहीं और 
ऐसे दौर में भी हम, तुम्हारे ही हैं सनम   

दौर

मोहब्बतों के दौर भी गुजर गए 
रंजिशों के दौर भी गुजर गए 
सन्नाटा पसरा ऐसा ज़ेहन में 
आरज़ू  किसकी है पता नहीं
मोहब्बतों के दौर ....

ऐसा नहीं कि कोई ख्वाहिश नहीं 
ऐसा नहीं कि कोई जुस्तजू नहीं 
धुंधली आँखों से सूझता नहीं 
मंज़िल कहाँ है कुछ पता नहीं 
मोहब्बतों के दौर .....

अब तो कोई दुश्मन भी न रहा 
मगर दोस्त भी तो कोई है नहीं
विश्वास ने छला है कुछ ऐसे हमें 
करें विश्वास किसपे अब पता नहीं  
मोहब्बतों के दौर ....

खुद पर विश्वास है बाकी अभी 
खुद से थोड़ी आस है बाकी अभी 
वक़्त भी कह रहा है बस यही  
अच्छाई की ज़माने में कमी नहीं 
मोहब्बतों के दौर ....
          -सीमा कौशिक 'मुक्त'