सब अच्छा ही अच्छा है नासमझ ज़िन्दगी न समझ खुली आँखों का ख़्वाब है कभी भी टूट सकता है सब सुख-दुःख की लहरों में डूबते-उबरते रहते हमारा यकीन यकीनन कभी भी टूट सकता है ✍️ सीमा कौशिक 'मुक्त' ✍️
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नासमझ
चाहे मान खुदा तू खुद को मगर , तू औरों को इंसान समझ । जो पूजें तुझे शामों सहर, उन भक्तों का तू मान समझ। तू माना है दीया लड़े अंधेरों से, पर बाती की औकात समझ । कोई मांग रहा गर दर पे तेरे, तुझे माना है धनवान समझ। माना है बहुत तू ताकतवर , तेरी ताकत वो है नादान समझ । नहीं अकड़ शोभती है तुझपर, हैं भक्त तो है भगवान समझ । पुण्यों का फल तूने पा ही लिया , इन पापों का तू भार समझ। हर तरफ है हाहाकार अभी, इसे आहों का तूफ़ान समझ। तू आसमान है मैं जर्रा हूँ , इसे जर्रे की ललकार समझ।