"समस्त इन्द्रियों के विषयों को जाननेवाला परन्तु इन्द्रिय रहित सबका धारण पोषण करनेवाला परन्तु आसक्तिरहित सभी गुणों को भोगनेवाला परन्तु निर्गुण सब प्राणियोंके भीतर बाहर वही चर अचर भी वही बहुत पास बहुत दूर भी वही आकाशरूप परमात्मा विभागरहित वही सभी प्राणियों में विभक्त सा वही विष्णु रूप में धारण पोषण करनेवाला वही रुद्ररूप में संहार करनेवाला वही ब्रह्मरूप में सबको उत्पन्न करने वाला वही ज्योतियों का ज्योति भी वही मायाजनक पर माया से परे वही " वही !वही परब्रह्म परमात्मा सभी प्राणियों के ह्रदय में स्थित तत्वज्ञान से प्राप्त होने योग्य और जानने योग्य है