अनुभव की अकड़ में, न तन प्राणी तू बोल मीठी मधुर, मृदु वाणी तू माना श्रम किया बहुत, सहा तूने बहुत पर इसकी दिखा न, मेहरबानी तू बोल मीठी मधुर, मृदु वाणी तू ----- जीवन अनुभव से माना, मन कड़वा हुआ कंठ तक रख ज़हर, बोल मीठी वाणी तू आज के वक़्त में दर्द पसरा हुआ हर उपाय यहाँ बेअसरा हुआ अपनों से बात कर, यूँ न अनजानी तू बोल मीठी मधुर, मृदु वाणी तू---- तन है तेरा शिथिल, दे सकेगा भी क्या कम से कम न दे दूजी, आँखों में पानी तू जो जितना तेरा करे, शूल सा वो गड़े इतनी भी क्या अकड़, न कर बेईमानी तू बोल मीठी मधुर, मृदु वाणी तू ----- ✍️ सीमा कौशिक 'मुक्त' ✍️