रुत बदलती रहीं उम्र ढलती रही दिल सिसकता रहा रूह तड़पती रही झूठ में, सॉंच में, वक़्त की आँच में मोम के बुत की तरह पिघलती रही ज़िन्दगी तू बता, क्या है मेरी खता क्यों इस तरह रंग तू बदलती रही खुशियों की आस में प्यार की प्यास में दर्द का क़तरा-क़तरा सटकती रही मौन के शोर में दर्द की हिलोर में ज़िन्दगी करवटें ही बदलती रही झूठ में, सॉंच में, वक़्त की आँच में मुक्ति की चाह में, 'मुक्त' बँधती रही ✍️ सीमा कौशिक 'मुक्त' ✍️